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इनके सामानिक त्रायस्त्रिंश
स्व इन्द्रवत् स्व इन्द्रवत् त्रायस्त्रिंश परिषद व प्रतीन्द्र १००० वर्ष की आयुवाले देव
२ दिन ७ श्वासो० १ पल्य की आयुवाले देव
५ दिन ५ मुहूर्त इस प्रकार देवों का वर्ण, मुकुट चिह्न चैत्यवृक्ष, प्रविचार, आहार का अंतराल श्वासोच्छास का अतंराल समय का वर्णन मिलता है ।
(ब) २) व्यन्तर देव देवों का दूसरा प्रकार है व्यन्तर । व्यन्तर अर्थात् विशेष अंतर ।
अन्तर का अर्थ है-अवकाश, आश्रय या जगह । जिन देवों का अन्तर (आश्रय) भवन, नगरावास आदि रूप विशिष्ट हो वे व्यन्तर कहलाते हैं ।७५
'व्यन्तर' शब्द का दूसरा अर्थ है
मनुष्यो से जिनका अन्तर नहीं (विगत) हो क्योंकि कोई व्यन्तर चक्रवर्ती, वासुदेव आदि मनुष्यों की सेवक की तरह सेवा करते हैं, अथवा जिनके पर्वतान्तर, कन्दरान्तर या वनान्तर आदि आश्रयरूप विविध अन्तर हों, वे व्यन्तर कहलाते हैं । अथवा व्यन्तर का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है-वनों का अन्तर वनान्तर है, जो वनान्तरों में रहते हैं, वे व्यन्तर देव होते हैं ।७६
व्यन्तर-'वि'अर्थात् विविध प्रकार के 'अन्तर' अर्थात् आश्रय जिनके हों वे व्यन्तर हैं। भवन, नगर और आवासों में-विविध जगह पर रहने के कारण ये देव व्यन्तर कहलाते हैं ।
तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वातिने इसका विशेष विवेचन किया है कि सभी व्यन्तरदेव ऊर्ध्व मध्य और अधः तीनों लोको के भवनों तथा आवासों में निवास करते हैं । वे स्वेच्छा से या दूसरों की प्रेरणा से भिन्न-भिन्न स्थानों पर जाते रहते हैं। उनमें से कुछ तो मनुष्यों की भी सेवा करते हैं । विविध पर्वतों और गुफाओं के अन्तरों में तथा वनों के अन्तरों में रहने के कारण उन्हें 'व्यन्तर' कहा जाता है।८
पूज्यपाद विरचित सर्वार्थसिद्धि में उल्लेख है कि जिनका नाना प्रकार के देशों में निवास होता है उनको व्यन्तर देव कहते हैं ।
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