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९. निवास-स्थान :
जीव के रहने के स्थान को निवास स्थान कहते है । दसों प्रकार के भवनपति देवों के निवास स्थान जम्बूद्वीपवर्ती सुमेरूपर्वत के नीचे, उसके दक्षिण और उत्तर भाग में तिरछे अनेक कोटा - कोटि लक्ष योजन तक होते हैं । ६५ देवों के निवास स्थान तीन प्रकार के होते हैं—
१) भवन
२) भवनपुर और
३) आवास
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१) भवन :
रत्नप्रभा पृथ्वी में स्थित निवास स्थानों को 'भवन' कोट से रहित, देवों और मनुष्यों के आवास को भवन
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रत्नप्रभा पृथ्वी के खरभाग और पंकबहुल भाग में उत्कृष्ट रत्नों से शोभायमान भवनवासी देवों के भवन होते है। ये रत्नप्रभा के नीचे नब्बे हजार योजन के भाग में ही होते हैं । ये बाहर से गोल, भीतर से समचतुष्कोण और तल में पुष्करकर्णिका जैसे होते हैं । प्रायः असुरकुमार 'आवासों' में और कभीकभी ‘भवनों' में बसते है तथा प्रायः नागकुमार आदि भवनों में रहते है । ६९ २) भवनपुर :
द्वीप समुद्रों के ऊपर स्थित निवास स्थानों को 'भवनपुर' कहते हैं । भवनपुर नगर के समान होते हैं ।
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कहते हैं । वलभि और कहते है । ६७
३) आवास :
तालाब, पर्वत और वृक्षादि के ऊपर स्थित निवास स्थानों को 'आवास' कहते हैं ।
ये आवास रत्नप्रभा के पृथ्वीपिंड के ऊपर-नीचे के एक-एक हजार योजन को छोडकर बीच के एक लाख अठहत्तर हजार योजन के भाग में सर्वत्र हैं । ये आवास बड़े मण्डप जैसे होते हैं 10
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जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र में देवकुरू य उत्तरकुरू में स्थित दो यमक पर्वतों के उत्तर भाग में सीता नदी के दोनों और स्थित निषध, देवकुरू, सुर, सुलस,
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