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• जैन आगमों में स्वर्ग-नरक
की विभावना
Jain Education International 2010 03
देवगति
मनुष्य
Do
तिर्यच गति
नरक -गति
चौदह राजु उत्तुंग नभ लोकपुरुष संठान । तामे जीव अनादितें भरमत है विन ज्ञान ॥
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