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जैनसंघने मळेलो दिव्यप्रकाश : हितोपदेश
आ ग्रंथरत्नना अध्ययनथी प्रारंभीने संपादन सुधीनी मारी प्रत्येक प्रवृत्तिओ पूर्णतया मार्गस्थ अने आत्मलक्षी बनी रहे ते माटे प्रतिपळ मारा आत्मानुं रखोपु करनार, मारा परम उपकारी, मार्गदाता, विशिष्ट विवेकदृष्टिए परमार्थना ज्ञाता, परमशासनप्रभावक-संरक्षक, सुविशाळ गच्छाधिपति व्याख्यानवाचस्पति आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजाना तथा मारा परमोपकारी जन्मकाळथी ज संयमधर्म प्रत्येनुं पूर्ण बहुमान जगाडी अनेक विघ्नो वञ्चय ढालशा बनी संयमधर्मनी प्राप्ति करावीने मारा जीवनना आंतरिक विकासमां पोताना मन, वचन अने कायानी शक्तिओनो सर्व रीते समुचित प्रकारे विनियोग करनार आचार्य भगवंतश्री विजय गुणयशसूरीश्वरजी महाराजना पवित्र चरणोमां भक्तिसभर हृदये पूर्ण अहोभावथी नमस्कार करुं छु.
सौ कोई आत्मार्थीजनो आ महान श्रुतरत्ननो तेजस्वी प्रकाश संप्राप्त करी स्व-पर- श्रेय साधवा उद्यमशील बनो अने निकटना भवोमां मुक्तिसुखना भागी बनो ए ज शुभाभिलाषा.
- भीलडीयाजीतीर्थे उपधानतपप्रसंगे वि. सं. २०६०, फागण सुद-१, शनिवार
तपागच्छाधिराज पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाना शिष्यरत्न
वर्धमानतपोनिधि आचार्यदेव श्रीमद्विजय गुणयशसूरीश्वरजी महाराजनो चरणचंचरीक
- विजयकीर्तियशसूरि
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