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जैनसंघने मळेलो दिव्यप्रकाश : हितोपदेश
वधुमां आ सटीक ग्रंथनी प्रतिलिपिनी प्रशस्ति जोतां ए पण निश्चित थाय छे के गच्छाधिपति भट्टारक पू. आ. श्रीसोमसुंदरसूरिजी महाराज, भट्टारक पू. आ. श्रीमुनिसुंदरसूरिजी म., भट्टारक पू. आ. श्रीजयचंद्रसूरिजी म., भट्टारक पू. आ. श्रीभुवनसुंदरसूरिजी म., भट्टारक पू. आ. श्रीजिनसुंदरसूरिजी म., अने महोपाध्याय श्रीजिनकीर्ति गणि वगेरे आचार्यो आदिनी कृपाथी आ ग्रंथ प्रतरूपे लखायो छे. आ बधा ज महापुरुषो तपागच्छना मोभरूप हता. एथी पण ग्रंथनी महत्ता प्रस्थापित थाय छे. ते प्रशस्तिना शब्दो नीचे मुजब छे.
गच्छनायकभट्टारकप्रभुश्रीसोमसुन्दरसूरि-भट्टारकश्रीमुनिसुन्दरसूरि-भट्टारकश्रीजयचन्द्रसूरिभट्टारकश्रीभुवनसुन्दरसूरि-भट्टारकश्रीजिनसुन्दरसूरि-महोपाध्यायश्रीजिनकीर्तिगणिप्रसादात् श्रीहितोपदेशवृत्तिः सम्पूर्णा ।। शुभं भवतु ।। हितोपदेश ग्रंथना संपादनमा उपयोगमा लेवायेली प्रतो :
आ ग्रंथरत्ननुं संपादन करवा माटे सटीक बे प्रतो अमने प्राप्त थयेल छे. १ - श्री हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर-श्रीसंघनो जैन ज्ञानभंडार पाटणनी छे. तेनो डाभडा नं. ६७ / पोथी नं. १५३८ छे, तेमां पत्र-२५२ छे. ४८३मी गाथा अपूर्ण पर्यंत अपूर्ण प्रत छे. - २ - श्री जैन ज्ञानभंडार - संवेगीनो उपाश्रय, हाजापटेलनी पोळ, अहमदाबादनी छे. तेनो डाभडा नं. १० / प्रत नं. १९ छे, पत्र-२१९ छे. ५२६ गाथापर्यंत संपूर्ण प्रत छे.
आ सिवाय मूळगाथानी प्रत पण बे अमने प्राप्त थयेल छे. १ - श्री हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर-पाटणनी छे. तेनो डाभडा नं. १९७ / प्रत नं. ७९२६ छे. पत्र-७ छे. एमां ५२६ गाथा छे. परंतु छेल्ली बंने गाथानो नं. ५२५ छे.
२ - ला. द. विद्यामंदिरमां पण मूळगाथानी हस्तप्रत छे. जेनो नं. ५८८३/२९११ छे. पत्र-१२ छे. सटीक ग्रंथमां कुल ग्रन्थाग्र-९०२५ छे अने टीका रचना संवत-१३०४ छे. संवेगी उपाश्रयनी संपूर्ण प्रत छे, तेमां पेज नंबर-२२० उपर बे लिटीमां आ प्रमाणे लखेल छ -
लिखिहारक श्रीजिनसंदरसूरिमहोपाध्याय श्रीजिनकीर्तिगणिप्रसादात् सा. खेटा लिखिता अद्येह श्रीदेवकुलपाटकनगरे लिखि संवत्-१४८२ वर्षे भाद्रपदमासे कृष्णपक्षे एकादशीतिथौ भूमवासरे ।। श्रीश्रमणसङ्घायुः चिरायुः भद्रम् शिवमस्तु मङ्गलमस्तु ।।श्रीः।। "हितोपदेशः" नामाभिधान : __ आ ग्रंथना नामनो अने ग्रंथकर्तानो स्पष्ट उल्लेख गाथा-५२२/५२३ मां करेल छे.
आ ग्रंथनुं प्रचलित नाम 'हितोपदेशमाला' छे अने मूळनी पाटणनी प्रत छे. तेमां छेल्ले इति श्री
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