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________________ जैनसंघने मळेलो दिव्यप्रकाश : हितोपदेश १७ "तेओश्रीना पट्टालंकार मुनिपति आचार्य श्रीदेवभद्र नामना थया, जेओनी वाणी जगतना भावरोगोने दूर करवा रसायण जेवी हती." - ४ तदीयपट्टे प्रतिभासमुद्रः, श्रीमान् प्रभानन्दमुनीश्वरोऽभूत् । स वीतरागस्तवनेष्वमीषु, विनिर्ममे दुर्गपदप्रकाशम् ।।५।। "तेओनी पाटे प्रतिभासमुद्र आ. श्रीप्रभानंदमुनीश्वर थया के जेमणे वीतरागस्तवनी दुर्गपदप्रकाश नामनी वृत्ति रची छे." - ५ आ प्रशस्ति तेओश्रीए नहि पण मुनि हर्षचंद्र गणिए लखी छे तेम निश्चितरूपे लागे छे. कारण के तेओ पोते पोताने माटे 'प्रतिभासमुद्र' एवं विशेषण लगाडे ए असंभवित जणाय छे. आ विचारणाने ते पछीना छट्ठा श्लोकनो आधार मळी रहे छे, जे आ प्रमाणे छे - एवं सपादशतयुतविंशतिशतपरिमितः प्रबन्धोऽयम् । लिखितः प्रथमादर्श गणिना हर्षेन्दुना शमिना ।।६।। “आ प्रमाणे एकवीश सो पञ्चीश (२१२५) श्लोक प्रमाण आ (वीतरागस्तोत्रवृत्ति) प्रबंध छे. जेने प्रथमआदर्श (नकल)मां मुनिश्री हर्षचंद्र नामना गणिए लख्यो छे." आ बधु जोतां आ ग्रंथना रचयिता पू. आ. श्रीप्रभानंदसूरीश्वरजी महाराज छे, ए वात निश्चित थाय छे. वळी तेओ नवांगवृत्तिकार पू. आ. श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजनी परंपरामां थयेल पू. आचार्य श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजना शिष्य पू. आ. श्रीदेवभद्रसूरिजी महाराजना शिष्य हता अने पू. आ. श्रीपरमानंदसूरिजी महाराजना वडीलबंधु हता, ए वात पण निश्चित थाय छे. पू. आ. श्रीदेवभद्रसूरि महाराज नवांगीवृत्तिकारश्रीना सीधा शिष्य नहि पण नवांगीवृत्तिकार पू. आ. श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजनी परंपरामां थयेल रुद्रपल्लीय पू. आ. श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजना शिष्य हता. तेओश्री जे रुद्रपल्लीय गच्छना हता, ते रूद्रपल्लीय गच्छनी स्थापना पू. आ. श्रीजिनशेखरसूरि महाराजे सं. १२०४मां कर्यानो उल्लेख छे. पण 'प्रश्नोत्तर रत्नमाळा'नी वृत्तिनी प्रांत प्रशस्तिमां अने पू. आ. श्रीहरिभद्रसूरीश्वरजी कृत 'सम्यक्त्वसप्तति' ग्रंथनी पू. आ. श्रीसंघतिलकसूरिजीए रचेली वृत्तिनी प्रशस्तिमां पण रुद्रपल्लीय गच्छनी स्थापना पू. आ. श्रीअभयदेवसूरिजीए के - जेमणे सं. १२७८मां 'जयंतविजय' काव्यनी रचना करी हती अने जेमने काशीना राजा तरफथी 'वादिसिंह'नुं बिरूद मळ्युं हतुं, तेमणे कर्यानो उल्लेख छे. तेने ज पुष्टि आपतो उल्लेख पूज्य उपाध्याय श्रीधर्मसागरजीए 'प्रवचनपरीक्षा' ग्रंथमां पण को छे. पू. आ. श्रीदेवेन्द्रसूरिजीए 'प्रश्नोत्तररत्नमाला' ग्रंथनी वृत्तिनी प्रशस्तिमां तेमज पू. आ. श्री संघतिलकसूरिजीए 'सम्यक्त्वसप्तति' वृत्तिनी प्रशस्तिमां पू. आ. श्रीप्रभानंदसूरि म. नी प्रशंसा करी छे. आम तेओ महाविद्वान हता ए तो वीतरागस्तोत्रवृत्तिनी प्रशस्तिमा प्रयोजेला 'प्रतिभासमुद्रः' अने 'प्रतिभाभिरामः' ए शब्दोथी पण जाणी शकाय छे. Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002567
Book TitleHitopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhanandsuri, Parmanandsuri, Kirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages534
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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