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जैनसंघने मळेलो दिव्यप्रकाश : हितोपदेश
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१०६ विधिपूर्वक श्रुतदान आ. श्री आर्यरक्षितसूरि म. १०६ विधिपूर्वक श्रुतग्रहण __ आ. श्री वज्रस्वामी म. ११६ श्रुतज्ञाननी अवज्ञा
मासतुष मुनि १३४ सुपात्रदान
बाहु मुनि, पुष्पचूला साध्वी, मूलदेव
श्रावक अने चंदनबाला श्राविका १४८ जिनवचनामृतश्रवण
रोहिणीयो चोर, चिलातीपुत्र १६२ जिनमंदिरनिर्माण
भरतचक्रवर्ती १६३ जीर्णोद्धार
वग्गुरश्रेष्ठी जिनबिंबनिर्माण
__ सुवर्णकार कुमारनंदी १८५ शीलपालन श्रीस्थूलभद्र स्वामी, राजीमती साध्वी,
सुदर्शन श्रावक, सुभद्रा श्राविका १९९ तपगुण
बलदेव मुनि, ब्राह्मी साध्वी, आनंद
श्रावक अने सुन्दरी श्राविका २०८ थी भावगुण
बाहुबली मुनि, मृगावती साध्वी, २११
ईलाचीकुमार अने कनकवती २३० विनय
अभयकुमार २६९ द्रव्य-भावोपकार
मुनीन्द्रराजाना पुत्रो ४४५ देशविरतिपालन
चेटक महाराजा ४६४ सर्वविरतिपालन श्रीहितोपदेश ग्रंथकर्तानो परिचय :
हितोपदेश ग्रंथना रचयिता पूज्य आचार्य श्रीप्रभानंदसूरिजी महाराजनो विगतवार परिचय मळी शक्यो नथी. परंतु उपलब्ध साधनोना आधारे निश्चितरूपे जेटलो जणाववा योग्य लाग्यो तेटलो अहीं रजू को छे. जैन परंपरानो इतिहास भाग-१-२-३ अने ४ बहार पडेल छे, तेना बीजा भागमां पत्र-३१ उपर आ ग्रंथना कर्ता तरीके आ. श्रीपरमानंदसूरि म. नुं नाम जणाव्युं छे. ते हकीकत मोहनलाल दलीचंद देसाईए लखेल जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पुस्तकना पत्र-४०९ उपर पण ए ज प्रमाणे दर्शाव्यु छे अने वीतरागस्तोत्र ग्रंथनी सटीक प्रतनी प्रस्तावनामां पं. अंबालाल प्रेमचंद शाहे तथा केटलांक हस्तलिखित ज्ञानभंडारनां लीस्टमां पण आ. श्री परमानंदसूरि महाराजनुं नाम जणाव्युं छे; परंतु आ स्थानमां ते सर्वनी एक सरखी भूल थवा पामी छे. एक बीजा उपरथी विश्वासने आधारे उतारो करायो छे, अगर तो प्रत्येकनी स्खलना थई छे. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पत्र-४०९ उपर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भा. ४ना पत्र-१९८मां तो ग्रंथकर्ता तरीके आ. श्रीपरमानंदसूरि महाराजनुं नाम दर्शावीने तेओने नवांगी वृत्तिकार आ.
शेर
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