SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनसंघने मळेलो दिव्यप्रकाश : हितोपदेश ते पछी चोथा सर्वविरतिद्वार, वर्णन करतां पांच महाव्रतो, पांच समिति अने त्रण गुप्तिरूप अष्ट प्रवचनमातानुं वर्णन करीने मुनिजनाने प्रमादनो विजय करवानो उपदेश आपतां कर्तुं छे के - आ प्रमाद ज संयमी आत्माओने संयमथी भ्रष्ट करनार छे. अगियारमा गुणस्थानके पहोंचीने वीतराग दशानो अनुभव करनारा आत्माओने पण आ प्रमादे ज पटक्या छे. विनाशना आरे रहेलो आ प्रमाद पण कषायोना अवलंबनथी ज पुनर्जीवनने प्राप्त करे छे; माटे प्रमादनो विजय प्राप्त करवा उद्यत थयेला मुनिए आ कषायोने जीतवा जोइए. आ क्रोध, मान, माया, लोभरूप कषायो पण संज्वलन आदि चार चार प्रकारना छे. कषायो करवाथी आत्माने केQ केवू नुकसान थाय छे ? आत्माना भावप्राणोनो केवी रीते नाश थाय छे ? इत्यादि वर्णवीने तेओ अंतिम उपदेश आपतां जणावे छे के “आ विश्वमा जे कांई पण दुःख देखाय छे, तेनुं मूळ कषायवृद्धि छे अने जे कांई पण सुख देखाय छे तेनुं मूळ कषायहानि छे." आथी “कषायोनो मूळमांथी नाश करी जीवमात्र प्रत्ये मैत्रीभाव केळवीने पापकर्म विराम पामो अने आ हितोपदेशमां सदाय रमणता करो" एवो उपदेश आपी ग्रंथकारश्रीए पोताना गुर्वादिनुं नाम आपवा पूर्वक पोतानो नामोल्लेख कयों छे. (गाथा-४५१ थी ५२३) आ ग्रंथरचनामां द्वादशांगीथी विरुद्ध तथा पूर्वाचार्यना आशयथी विरुद्ध कई पण लखायुं होय तो ते माटे श्रुतधरो पासे क्षमा याची छे अने ते भूलो सुधारवा विनंति करी छे. (गाथा-५२४) अंतमां मेरुपर्वतना शिखर उपरनां जिनमंदिरो ज्यां सुधी स्थिर रहे त्यां सुधी आ ग्रंथ पण विजयवंतो रहो तेम जणावीने पांचसो पञ्चीश गाथानी संख्यावाळो आ ग्रंथ सांभळनारा, भणनारा, स्वाध्याय करनारा अने चिंतन करनारा भव्यात्माओनुं कल्याण करनारो थाओ. एवी शुभाभिलाषाने प्रगट करीने आ ग्रंथनी समाप्ति करी छे. (गाथा-५२५-५२६) प्रस्तुत सटीक हितोपदेश ग्रंथमां कथानकोनी रचना खूब सुंदर शैलीमा संस्कृत अने प्राकृत बंने भाषामां छे. अनेक कथानकोथी समृद्ध एवो आ ग्रंथ छे. वाचक वर्ग ज्यारे आ ग्रंथने वांचशे त्यारे स्वयं ज आ ग्रंथनी विशेषतानो ख्याल आवशे. सरळ शैलीमां संपूर्ण मोक्षमार्ग निरूपण आ ग्रंथमां ग्रंथकारश्रीए करेल छे अने टीकाकारश्रीए पण मूळ ग्रंथना पदार्थो सौ कोईने सारी रीते समजी शकाय ते माटे सरळ शैलीमा विवरण करेल छे. श्रीहितोपदेश ग्रंथमां आवता ते ते विषयनां दृष्टांतो गाथा विषय ___ दृष्टांत २९ प्रवचनभक्ति श्रीसंभवनाथ स्वामी ६२ जीवहिंसा मृगापुत्र ‘लोढिया' ६६ जीवदया भील ७६ अनुकंपादान सोमदत्त Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002567
Book TitleHitopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhanandsuri, Parmanandsuri, Kirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages534
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy