________________
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा १९ २० २१
जीवदयसारणीए वाणीए सेणिएण सित्तम्मि । कालखित्तम्मि करुणारामो न कहिं वि पल्लविओ ॥ ७१ ॥ भणियं च णेण पच्चक्खमेव माणं न इत्थ जुत्तीओ | सुत्तीओ इव मुत्ता जं ताओ मुत्तियमईहिं ॥ ७२ ॥ तो सेणिएण भणियं पच्चक्खेणं न होइ पडिसेहो । जीवाइपयत्थाणं नूणमपच्चक्खरूवाणं ॥७३॥
उप्पन्नं पियमाणं पच्चक्खा तमिह काल ! विन्नेयं । जं होइ पुव्व काल ! पमाणं पच्चक्खसरिसं ति ॥७४॥ जं संवाइपरोक्खं तं पि पमाणं वयन्ति तो विबुहा । जं पुण तुमं न मन्नसि कारणेयं तमिह नेयं ॥ ७५ ॥ पावासत्ते सत्ते उवएसो कुणइ किन्नु धम्मरुई ? | नीलीरत्ते वत्ते कुंकुमराओ कहं होउ ?" ॥७६॥ एवं च सेणिएण रन्ना हियये विणिच्छियं सम्मं ।
सो कसो कालो नूणमभव्वो भवाणन्दी ||७७॥৷ परमज्ज दिने सेरियाऽ भक्खणयाए ताव होइ परलोए । सव्वन्नुवयणओ मे न दुग्गइदुक्खदन्दोली ॥७८॥ सव्वन्नुवयणसवणे हिययं सुयणेहिं होइ दायव्वं । अप्पहिए जीवदयासहिए महिए सुरेहिं पि ॥ ७९॥
अन्नं च
अप्पहियं कायव्वं जइ सक्का परहियं पि कायव्वं । अप्पहियपरहियाणं अप्पहियं चेव कायव्वं ॥ ८० ॥ [ ] एवं वियारिऊणं हट्ठेण सुहडेहिं सेणियनिवेण । सोयरियकरगाओ हराविया महिसपंचसया ॥ ८१ ॥ अइगहणगिरिनिकुंजे सिग्घं नेइऊण दूरकंतारे । सच्छन्दं चरमाणा मुक्का सुहडेहिं निववयणा ॥८२॥ सेरिहविरहहुयासणतत्तो तओ य कालसोयरिओ । पेच्छइ विभंगनाणी रत्तच्छे गिरिनिकुज्जम्मि ॥८३॥
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
३४३
5
10
15
20
25
www.jainelibrary.org