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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६ तीए झडत्ति वुत्तं मुणिमुहसंकन्तघुसिणतिलएण । सुपरिक्खयाऽसि भद्दे ! फालेण व दिन्नतेएण ॥८४।। तो तीए मुहरायं निम्मायं ललियधीरसंलावं । सोऊण बुद्धदासो चिन्तइ सम्मं सई एसा ॥८५।। भणियं च जीवलोए निस्संका धीरवयणनिन्नासा । सच्चरिय च्चिय जीवा पावा सव्वत्थ संकिल्ला ॥८६।। एवं भाविय तत्तो नियजणणि भणइ सोऽवि निस्संकं । माइ परिक्खा किज्जउ अत्तवहूए य किमजुत्तं ? ॥८७।। जइ कहवि दिव्वजोगा धारिस्सइ माइ ! चालणीसलिलं । तेणं पक्खालिस्सइ कलंकपंकं समग्गं पि ॥८८।। अहवा अन्नाहि समा माइ ! इमा हवउ नयरिरमणीहि । ता सव्वहा परिक्खह सुपसन्ना होउ मज्झुवरिं ।।८९|| सयणजणेण वि भणिया तीए सासू समप्पए तयणु । चालणिमेसा वि करे धारइ हियए य नवकारं ॥१०॥ सासू वि खिवइ सलिलं मंगलपूओवयारसोहिल्लं । सीलं व ट्ठाइ तीए निच्छिदं चालणीए वि ॥११॥ गयणम्मि समुच्छलिओ जं इइ सुभद्दा महासई एसा । पुप्फवरिसेण सद्धिं उग्घोसो दुन्दुहिसणाहो ॥१२॥ तो जणियचमुक्कारो एइ नरिन्दो वि पउरपरिवारो । अग्घज्जलिं पयच्छइ महासईए सुभद्दाए ॥९३।। विन्नवइ महाराय मया तं होसु नयरिलोयस्स । दुहियस्स सुहं दिन्ती उगघडिन्ती दुवाराइं ॥९४।। उप्पायनिरोहेणं भावियदोसेण कलुसिया नयरी । तुह सीलेण सुभद्दे ! ससिणा धवलिकया अहुणा ॥९५।। तुमए जिणिन्दधम्मो एयम्मि जयम्मि सरवरे भद्दे । कमलायरो महासइ ! वियासिओ सीलदिणमणिणा ॥९६।।
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