SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०३ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६ अम्हाणं बालाणं अविवेयपराणं पुन्नरहियाण । होसि परामुहहियओ होऊण पियामहो कहणु ? ॥३७॥ गब्भत्थस्स वि जइ मह जीवियदाणेण अहव जणओऽसि । ता अहुणा कीस? तुमं मुञ्चसि मह एक्कयं बालं ॥३८॥ जह फुरइ जए तिमिरं दिणमणिविरहे चउद्दिसिमिन्ति । तह तुज्झ विणा संपइ रिउसिबिरं किं न पसरेइ ? ॥३९॥ ता ताय मन्तिसत्तम खमसु तुमं मज्झ एक्कमवराहं । आइवराहं तं चिय खमाहरं बिंति मन्तिवरा" ॥४०॥ ता एहि पुरं पाडलिपुत्तं चिरकालपालियं जेण । पुणरवि तिवग्गसाहणपरो जणो होइ एक्कमणो ॥४१॥ "चाणक्को समयन्नू पसन्नचित्तो भणइ निवहुत्तं । मा कुणसु तुमं खेयं सपुन्नसम्पन्नरज्जसिरी ॥४२॥ पुव्वकयसुकयतरुवरफलाणमिह भायणं जणो होइ । परमत्थो एत्थ फुडं निमित्तमेत्तं परो होइ ॥४३॥ ता जइ सुमरसि सच्चं मज्झोवयारं कयन्नुओ होउं । परलोयसाहणे मह हवसु सहाओ महाराय ! ॥४४॥ खामियसव्वजणोहं एक्कमणोऽहं पवन्नसन्नासो । अहिलसियसग्गवासो तिविहेणं चत्तघरवासो" ॥४५॥ चाणक्केण य भणिए वयणे एवम्मि बिन्दसारनिवो । खामित्ता पूइत्ता पुरम्मि जा होइ गन्तुमणो ॥४६।। भणइ सुबन्धुमन्ती ताव इमं देव मंतिरायस्स । चाणक्कस्स करिस्सं महूसवं तुम्ह आणाए ॥४७॥ भवियव्वयावसेणं रन्ना नो लक्खियं मणो तस्स । दिन्नाएसो तो सो करइ सतोसो महापूयं ॥४८॥ पूइत्ता पच्छन्नं धूवं उग्गहिऊण अइबहुयं ।। अंगारो निक्खित्तो करीसमज्झम्मि पावेण ॥४९॥ 15 20 25 JainEducation International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002561
Book TitleJayantiprakaranvrutti
Original Sutra AuthorMalayprabhsuri
AuthorChandanbalashreeji
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2008
Total Pages462
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy