________________
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४|५|६
सव्वंगसुन्दरीए सुयमेयं तयणु भन्नए तीए । जणणिजणयाणहुत्तं मुञ्चह मं पव्वइस्सामि ॥ १३८॥ तो ताणऽणुमणं सुव्वइगणिणीए पायमूलम्मि सिरिधम्मघोससूरी तं दिक्ख गुरुविभूईए ॥१३९॥ गुरुकुलवासे रयणायरम्मि सिक्खातरंगमालाहिं । अणवरयं सा पावइ गुणरयणाई महग्घाई ॥ १४०॥ संजमलच्छीहारं कुणइ य एसा पमायपरिहारं । बुज्झइ आगमसारं अप्पाणं धरइ अवियारं ॥ १४१ ॥ छज्जीवकायपुरवरदिढपायारे इमीए पइसारे । सच्चं वाणी महुणा अच्चुब्भुयसच्चिक्कजम्मपुरी ॥१४२॥ तत्तो गीयत्थाए कित्ती चन्दुज्जला प्फुरइ तीए । अइसाइखमाधरणे सहसमुहा सेसमुत्ति व्व ॥ १४३॥ उवहसियर रूवसिरिं पसंसेति वीयरागो वि । जीए उवसमलच्छी सही सया पीइपडिबद्धा ॥१४४॥ गामागरनगरायरेसु विहरन्ती सा कमेण साकेए । पत्ता पवित्तिणीए सद्धि सद्धम्मकम्मरया ॥ १४५॥ भूसणसिट्ठिस्स गेहे वसहीए ट्ठाइ आगमविहिए । सुपसिद्धो अह तीए नयरे रूवाइगुणनिवहो ॥ १४६॥ सिरिमइ - कन्तिमइओ आगमणं जाणिऊण तो तीए । सोच्चा रूवपसंसं वसहीए इन्ति रहसेणं ॥ १४७॥ महयरियं वंदित्ता भणन्ति सव्वंगसुन्दरी कत्थ । कहिया पवित्तिणीए गयाओ तीए सयासम्मि ॥ १४८ ॥ जम्मन्तरनेहेणं जाया पीई य धम्मसद्धा य । भणियाओ कीस धम्मं न करेह ? जिणिन्दपन्नत्तं ॥ १४९॥ भणियं ताहि करेमो गयाओ तो महयरीए पासम्म । ती धम्मो कहिओ गहिओ अह भावसारं तु ॥ १५०॥
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
२४१
5
10
15
20
25
www.jainelibrary.org