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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४।५।६
कयसंकेओ पुरिसो आगच्छइ निच्चमेव एयाए । पासम्मि ममं दटुं अज्ज सिग्धं अवक्कंतो ॥११२॥ तो उव्विग्गो गन्तुं चिन्तइ ता सा सहीहिं परियरिया । तस्सासन्ने पत्ता सो थक्को सुत्तविड्डेणं ॥११३।। तुह सहि ! भत्ता सुत्तो खिडंक्किरि केरिसं करिस्सामो । इय भणिऊण गयाओ नियनियगेहेसु सव्वाओ ॥११४॥ खट्टाए उवविट्ठा सा पुण गन्तूण पइसयासम्मि । तो उट्ठिऊण एसो उवविठ्ठो अन्नट्ठाणम्मि ॥११५॥ अह चिन्तियं च तीए किं रुट्ठो मज्झ वल्लहो ? एसो । नय किं पि कयं खूणं मायापित्तेहिं एयस्स ॥११६॥ पणए अविणया रोसो जायइ दइयस्स सो कओ नेव । अखणिज्जंततलाए मगरो चिय पढमं पविट्ठो ॥११७।। मुञ्चामो सयणीयं किं ववसइ ? ताव एस पिच्छामि । अह उट्ठियाए तीए सयणीए तयणु सो सुत्तो ॥११८॥ चिन्तइ मणेण एसा जो किर पाणाण नायगो होही । तविलसियं च एवं हाहा मे कम्मपरिणामो ॥११९।। अह मुञ्चइ नीसासे उन्हुन्हे दइयरोसजलणस्स । कलुसीकयआसामुहधूमसिहाविब्भमे एसा ॥१२०॥ रुयमाणीए तीए विरहदवो अंसुवारि धाराहि । सिंचन्तो परिवड्डइ बन्धू किल अग्गी तेलस्स ॥१२१॥ जह तीए पुव्वभवे भाउज्जायाए दुक्खरिच्छोली । दिन्ना सयलं रयणि तह पावइ सा वि चिरकालं ॥१२२॥ एवं दुक्खतत्ताए तीए अरुणोदयम्मि सो भत्ता । गच्छइ नियए नयरे दुवारवालस्स कहिऊण ॥१२३॥ सा वि य पभायसमए सहीहिं उस्सूणलोयणा दिट्ठा । भणिया कीस? किसोयरि ! जया एवंविहावत्था ॥१२४॥
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