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जयन्तप्रकरणवृत्तिः । गाथा ४|५|६
ससुरकुले गन्तूणं पइणा सह ठाइ जाव दिणदसगं । तत्तो पिउणो गेहे जा पत्ता ताव सम्पत्ता ॥८॥ पइणो मयस्स वत्ता केण व रोगेण दिव्वजोगेण । तो रोइउं पवत्ता तह जह रोयइ कुडम्बं पि ॥ ९ ॥
धणसिट्टिं विलवन्तं दट्ठूणं दुहभरेण अक्कन्तं । धरिऊण धीरिमं तो भणइ इमं धणसिरी धूया ||१०|| मा माइ ताय रोयह कम्मफलं अम्ह तुम्ह को दोसो ? | ता मा मुज्झइ बुज्झइ उज्झह सोगं मम करणं ॥ ११ ॥
तो उच्छंगे घित्तुं भइ पिया पुत्ति ! निष्फला जाया । मज्झं मणोरहा ऊसरम्मि जह वावियं बीयं ॥ १२ ॥
ता पुत्ति ! मज्झ गेहे कम्मं मा कुणसु किंपि ताव तुमं । कप्पडियतडियदीणाइयाण दाणं पयच्छेसु ॥ १३ ॥
पच्छिमभवम्मि तुम न विइन्नं तेण नेह ते भोगा । जेण जणम्मि पवाओ अवियन्नं लब्भए नेव ||१४|| दियहाणि कवि सोगं काउं तो नियनियेसु कज्जेसु । लग्गो सव्वो वि जणो विसुद्धसीला धणसिरी वि ॥ १५ ॥ भद्दकरिणि व्व वियरइ दाणं दीणाइयाण निच्चं पि । सयणाणं वच्छल्ले रइयरुई सल्लवणम्मि ॥ १६॥ परलोयं पत्तेसुं जणणी - जणएसु धणसिरी दुहिया । धणवइ-धणावहिं भणिया तो बन्धवेहिं इमं ॥१७॥ बहिणि तुमं मा खेयं कुणसु विसायं च अहव संतावं । जं अम्हघरलच्छी अब्भुयसुहकारिणी निच्चं ॥१८॥ सिलहिमसेलतुल्लां तुमं सि जं बहिणि भरहवासम्म । अन्नाणं अम्हाण वि अलंघणिज्जा तओ होसि ॥ १९ ॥ इ बन्धवेहि एसा अमियरसासारसारवयणेहिं । पन्नविया पल्लविया सव्वंगं कप्पवल्लि व्व ॥२०॥
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