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जयन्ती प्रकरणवृत्तिः । गाथा ४/५/६
संगामगयणपसरियपरबलतिमिरावहारसूरकरा । छण्णवइकोडिसुहडा पसरन्ति य सिंहनाएणं ॥ ४३॥
बत्तीसमउडबद्धा निवसहस्सा इंति नियबलसमिद्धा । दुद्धररणरससाहसरहससभरोब्भिन्नरोमञ्चाः ॥४४॥ महया सम्मद्देणं हयगयरहसुहडगहिरसद्देणं । भरहनरिन्दो गच्छइ सयम्भुरमणो व्व अइगरुओ ||४५॥ अखण्डियप्पयाणो जोहाणं विहियबहुधणपयाणो । पत्तो सन्धि रणाभिसन्धि धरेमाणो ॥४६॥ बाहुबली वि नरिन्दो नाणाविहविहियमंगलाणन्दो | चउरंगदलसमग्गो पयट्टपत्थाणसुहलग्गो ॥४७॥ परबलसमुद्दवेला पडिक्खलणे मलयमेहलाबन्धा । तस्स पयाणे भद्दा चरन्ति करिणो घणमयन्धा ॥४८॥ रेवन्तदेवहिट्ठियसुपइट्ठिय अंगुवंगरंगिल्ला | वग्गन्ति तओ तुरया मणवणरया सुजाइल्ला ॥४९॥ तयणु परमत्थसारा चक्करवोच्छलियजणचमक्कारा । संगामिया सरन्ति य मणोहरा तह रहा तुरियं ॥ ५० ॥ पसरन्ति पञ्चसाहा मयनाहा जाण अरिकरिन्देसु । ते सुहा कोडगुणा गुणवन्ता पहरणसणाहा ॥ ५१ ॥ अणवरयपयाणेहिं सउणगुणुच्छलियबिउणिउच्छाहो । बाहुबली महिनाहो पत्तो देसस्स सीमाए ॥५२॥
सन्ति हया गज्जन्ति गयवरा घणघणन्ति रहलक्खा । मुञ्चन्ति सीहनायं सुहडा संगामविहिदक्खा ॥५३॥ वियरन्ति सेन्नमझे अविहत्था मागहा धवलहत्था । कुलगोत्तकित्तणेणं धीराणं कयरणुच्छाहा ॥५४॥ रणतूरसद्दसवणे रभसभरुल्लसिय अंगुवंगेसु ।
गविज्जन्तण वि बहुं नमन्ति सुहडाण सन्नाहा ॥ ५५ ॥
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