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________________ जयन्ती प्रकरणवृत्तिः । गाथा ४/५ | ६ चिन्तइ य महाराया एस मुणिन्दो निरीहमणकमलो । धन्नो ज्झाणपवन्नो निच्चलचित्तो महासत्तो ॥ ५९ ॥ एएणं झाणेणं पवड्डूमाणेणं कहवि अवसाणे । गच्छइ कम्मि विमाणे ? इय पुच्छिस्सं जिणवीरं ॥ ६० ॥ सामच्छिऊण एवं राया हत्थिम्मि सिग्घमारूढो । गच्छइ जिणिन्दचरणारविन्दवन्दणकउम्माहो ॥ ६१ ॥ पत्तो सेणियराया वे भारगिरिन्दसन्निहाणम्मि । तत्तो विहिणा पविसइ गुणसिलउज्जाणओसरणे ॥६२॥ वन्दइ वीरजिणिन्दं हिट्ठो तिपयाहिणीं करेऊण । संत्यसब्भूयगुणो आसइ ईसाणदिसिभाए ॥६३॥ झाणे पसन्नचन्दो जम्मि मए वन्दिओ रिसी भयवं । तेण कहिँ सुरलोए गम्मइ ? पुच्छइ निवो तत्तो ||६४|| अह भइ जिणवरिन्दो नरिन्द एएण ज्झाणबन्धेण । गम्मइ सत्तमनरए घोरदुक्खाण नियघरए ||६५|| मेहगहीरसरेणं जिणभणियं सेणिओ राया । विज्जुज्जोएणिव लोयणाई मीलेइ खणमिक्कं ॥ ६६॥ चिन्तइ य निवो मुणिपुंगवाण सज्झाणनिच्चलमणाण । निस्संगाण य दुग्गइदुहदन्दोली कहं होइ ? ॥६७॥ किं ? दोगच्चं चिंतामणिस्स सूरस्स हवइ संतमसं । चंदस्स व सन्तावो अमियस्स व होइ किं ? मुच्छा ||६८ ॥ तम्हा मए न सम्मं सुयं जिणिन्दस्स भासियं मन्ने । अन्नं पि पुच्छिऊणं करेमि सन्देहविद्दवणं ॥ ६९ ॥ इय चिंतिऊण राया जम्पइ संपइ जिणिंद ! उववाओ । तस्स मुणिणोऽवसाणे कम्मि विमाणे हवइ सामि ? ॥७०॥ अह भइ जिणो नरवर ! सम्पइ जइ एस मुणिवरो कालं । कुज्जा तो सुद्धमणो गच्छइ सव्वट्टसिद्धीए ॥७१॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_02 २०९ 5 10 15 20 25 www.jainelibrary.org
SR No.002561
Book TitleJayantiprakaranvrutti
Original Sutra AuthorMalayprabhsuri
AuthorChandanbalashreeji
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2008
Total Pages462
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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