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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २३
नाभिस्स जुयलजाया जाया अमरिंदसंथुणियपाया । मरुदेवा सिवसुहफल-केवलपरमाणुनिम्माया ॥८०॥ किन्हचउत्थितिहीए आसाढे वइरनाहमुणिजीवो । सव्वट्ठविमाणाओ, तीए कुच्छिम्मि अवइन्नो ॥८१॥ वसहगयमाइयाणं पासइ सुमिणाइ चउदस संपुन्ना । हिट्ठा तुट्ठा उठुइ मरुदेवा विम्हउल्लसिया ॥८२॥ तो सा [चउदस] साहइ सुमिणाइ नाभिनरवरिन्दस्स । अज्ज मए दिट्ठाइ अदिट्ठपुव्वाइ एयाइं ॥८३॥ सो वि य जम्पइ हिट्ठो, देवि ! इमाइं महत्थसुमिणाई । मन्ने होही पुत्तो अईगरुओ कुलगरो तुम्ह ।।८४॥ चलियासणो सुरिन्दो विहिणा तत्थेव भणियसक्कत्थओ । एइ निसाए सेसे मरुदेवाए थुइं कुणइ ॥८५।। "तुज्झ महासइ ! नमिमो जेण [तए तित्थयरजीवो] । धम्मवरचक्कवट्टी कुच्छीए धारिओ देवि !" ॥८६॥ इच्चाइ निवेइऊणं, सक्को जिणजणणिसंथवं काउं । संतोसमुव्वहन्तो, जहागयं पडिगओ झत्ति ॥८७॥ अह वट्टइ सो भयवं साणन्दसुरिन्दकयसुहाहारो । तो कसिणअट्ठमीए मासे चित्तम्मि सुहलग्गे ॥८८।। उच्चट्ठाणट्ठिएसुं, गहेसु सुहेण पसवेइ । मरुदेवा तिहुअण[जणसुहं] पढमतित्थयरं ॥८९॥ जाए तिहुअणनाहे पढमजिणिन्दम्मि सयलतियलोके । उज्जोओ संजाओ नेरइयाणं पि सुहकारी ॥९०॥ निवत्तियम्मि सयले दिसाकुमारीहि सूइकम्मम्मि । सिहासणम्मि चलिए, सक्को वि पउंजए अवहिं ॥९१॥ पेच्छइ जम्बुद्दीवे, भरहे पढमं जिणेसरं जायं । हरिसभरनिब्भरंगो भणिउं सक्कत्थयं विहिणा ॥१२॥
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