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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २।३ सुररइयसमोसरणे रयणोच्चयकणयरूप्पपायारे । रमणीए किंकिल्लिप्पमुहेहिं पाडिहारेहिं ॥१५॥ सिंहासणे निविट्ठो जोयणनीहारिणीए वाणीए । भवियाण जिणवरिन्दो धम्मकहं कहइ करुणाए ॥१६॥ चक्की वि वइरनाहो पउत्तिकहणे निउत्तपुरिसेहिं । वद्धाविओ सहरिसं तित्थयरसमागममहेण ॥१७॥ तेसिं पसरन्तपुलओ, दाऊणं पारितोसियं दाणं । सत्तट्ठपए गन्तुं भत्तीए तद्दिसाहुत्तं ॥१८॥ धरणियललुलियभालो कयंजली ललियमहुरवाणीए । हरिसंसुपुन्नयणो सक्कत्थयं भणइ एक्कमणो ॥१९॥ अत्थाणआसणत्थो तत्तो आइसइ पच्चइयपरिसे । कारावह नयरीए महूसवं जिणवरागमणे ॥२०॥ कयमज्जणोवयारो देवंगदुकूलरइयसिंगारो । मउडायअलंकारो गयाइचउरंगपरिवारो ॥२१॥ जयकुंजरमारूढो ढलन्तचलधवलचामराडोवो । सिरिचक्किवइरनाहो गच्छइ जिणवन्दणुम्माहो ॥२२॥ दट्ठण समोसरणं हिट्ठो जयकुंजराउ उईन्नो । पंचविहाभिगमेणं कयञ्जली पविसइ तत्थ ॥२३॥ तिपइक्खिणी करेऊण विहिणा सक्कत्थयं भणेऊण । इसाणदिसाभाए आसीणो उचियट्ठाणम्मि ॥२४॥ "भयवं वि वइरसेणो वित्थारइ धम्मदेसणं तत्तो । मोहविसपरममन्तं अन्तररिउनिग्गहे जन्तं ॥२५।। संसारे कंतारे परिभमन्ताण कम्मवसयाण । जीवाण मग्गलग्गो मच्चुकरिन्दो महारुद्दो ॥२६।। पुरओ य घोरमुत्ती एइ जरा रक्खी तुरियं । जहा होइ दोक्खक्खाणी दुक्कमनरिन्दअत्थाणी ॥२७||
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