________________
जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २३
एसो कयावराहो रन्नो अंतेउरम्मि तेणित्थं । निग्गहणिज्जोऽवस्सं न दोसवं इत्थ राया वि ॥१९७॥ इय घोसणेण लोओ पहे पहे पिंडिओ निरिक्खंतो । चिन्तइ अहो किमेयं ? विहिणो अघंडतसंघडणं ॥ १९८ ॥ अमयमओ तावहरो कलालओ सव्वजणमणाणंदो । विहिणा विहिओ कहमवि ही ही चंदो वि सकलंको ॥ १९९॥ अवराहमंतरेण वि ससहरसूराण राहुणा गसणं । दीस जह तह वसणं मन्ने एयस्स गुणनिहिणो ॥ २००॥ अहवा जह चंदणमवि लहइ दुहं विविहविहरणाइयं । घट्टं पुण वंजिज्जइ होही तह एस नणु पुज्जो ॥२०१ || हाहा कयंत ! निग्घिण ! गुणरयणमहोयहिस्स महणेण । इसरो व्व कालकूडं अजसं चिय जइ परं लहसि ॥ २०२॥ इय हाहारवबहिरियदियंतरं नयरिलोयनयणाण । वाहजलं बहु पसरइ तद्दोसमलं व अवणेउं ॥ २०३॥ एवं सघरदुवारे भामिज्जन्तो समेइ अह कमसो पेच्छइ य तं । महासई मणोरमा तस्स वरघरिणी || २०४ ||
जह सूरमंडलाओ न होइ पलए वि कहवि तमपसरो । तह मज्झ वल्लहाओ न सव्वहा दोसलेसो वि ॥२०५॥ राया वि एस आयारखीरनिहिणो करेइ उल्लासं । तं एवं दुहऊ मन्ने दुट्ठो विही चेव || २०६ || जम्मन्तरम्मि अहवा सयमेवारोवियस्स अवियप्पं दिढमूलकम्मतरुणो फलमेयमुवट्ठियं तस्स ॥२०७॥ किं तस्स पडियारो कीरइ ? केणावि सत्तिमंतेण । होही तहावि जाणे जिणिंदपूयापभावेण ॥२०८॥ भणियं च
44
'भत्तीए जिणवराणं खिज्जंति पुव्वसंचिया कम्मा । आयरियनमोक्कारेण विज्जामंता वि सिज्झति ॥ २०९ ॥ [ ]
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
१४१
5
10
15
20
25
www.jainelibrary.org