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जयन्तीप्रकरणवृत्तिः । गाथा २।३
१०३ गज्जंति घणा धणियं सद्धिं रयणायरेण अणवरयं । जमजीहसच्छहाओ फुरंति सोयामणिमाला ॥२२७॥ चिंतइ य वीरभद्दो धीरमणो दूरचत्तमइमोहो । जं ठाणमावयाणं जलही सत्ताहिओ जइ वि ॥२२८॥ पंचपरमेट्ठिनवकारमंतसज्झाणजाणमाहप्पं । लभ्रूण पिए संपइ जइ कहवि हु जीवियं धरिमो ॥२२९।। धीरत्तं कायव्वं पिए ! समुद्दम्मि लद्धलक्खेहि । जं धीरधीवराणं अप्पवसा अणिमिसा हुंति ॥२३०॥ इय वीरभद्दवयणं सोउं साणंगसुंदरी सहसा । नवकारसरणसरणं निययं हिययं धरइ धीरा ॥२३१॥ भणइ सा पिय ! किज्जउ पच्चक्खाणं इमम्मि वसणम्मि । सायारं पायारं पुरम्मि सगुणाण पउराण ॥२३२॥ एवं जंपंताणं ताणं हियए दिटुं कुणंताणं । जिणवयणं गुरुफलयं मयणरईणं व निद्धाणं ॥२३३।। दुइंतदइवविलसियकरिसुंडादंडचंडकल्लोला । भंजंति जाणवत्तं सुदिदं सुकयाण ठाणं पि ॥२३४॥ निवडइ भवम्मि कुडिले विहिम्मि सच्चं महावया निच्चं । किंतु समुद्दे ताणं सहसा फलयागमा जाया ॥२३५।। अहऽणंगसुंदरीए सुथिराए सलिलसित्तवच्छम्मि । अक्खयफलए कमसो संपत्ते तीरदेसम्मि ॥२३६।। चंदणवणगहणंतरपरिसप्पिरपवणछिक्कदेहाए । मुच्छाविगमुम्मीलियनयणाए चिंतियं एयं ॥२३७॥ को एसो अह देसो ? का वत्था ? कत्थ वल्लहो वीरो ? । कह परीयणो न दीसइ ? सीसइ कस्स व दुहं एवं ? ॥२३८।। धणपरियणसयणाणं न तहा विरहो महं दुहं देइ ।
25 जइ वीरभद्दपिययमविओयदहणो दहइ देहं ॥२३९ ।
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