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________________ to the to २१० ध्यानशतकम् अथ रौद्र ध्यान के चार भेदनिघृण चित्त करी जीव वध नीत धरी वेध बंध दाह अंक मारण प्रणाम रे माया झूठ पिशुनता कठन वचन भने एक वृ[ब्रह्म जग मने नाना नहीं काम रे पंचभूतरूप काया देवकू कुदेव गाया आतम स्वरूप भूप नहीं इन ठाम रे छावा पाप करे लरे दुष्ट परिणाम धरे ठगवासी रीत करे दूजा भेद आम रे ४ पर धन हरे क्रोध लोभ चित धरे दूर दिल दया करे जीव वध करी राजी है पाप से न डरे कष्ट नरकके गरे परे तिनकी न भीत करे कहे हम हाजी है मांस मद पान करे भामिनि लगावे गरे रात दिन काम जरे मन हूये राजी है नरककी आग जरे जमनकी मार परे रोय रोय मरे जिहां अल्ला है न काजी है ५ अथ चौथा भेद साद आद साधन के धनकू समार रखे कारण विसेके सब मेलत महान है वीणा आद साद पूर पूतरी गंध कपूर मोदक अनेक कूर ललना सुहान है अमनोगसे उदास दुष्ट मनन विसास पर घात मन धरे मलिन अग्यान है आतमसरूप कोरे तप जप दान चोरे ग्यानरूप मारे कोरे टरे रुद्र ध्यान है ६ अथ स्वामी राग द्वेस मोह भरे चार गति लाभ करे नरकमे परे जरे दुखकी अगनसे किसन कपोत नील संकलेस लेस तीन उतकिरू [कृष्ट रूप भइ गइ है जगन से मोहकी मरोर पगे कामनी के काम लगे निज गुन छोर भगे होरकी लगन से एही रीत जिन टारी भय है धरम धारी मात तात सुत नारी जाने है ठगन से ७ अथ लिंग ४ कथनदिव माहे बहु वार जीव वध आदि चार चिंतन कर करत लिंग प्रथम कहातु है बहु दोस एक दोन तीन चार चिंते सोय मोहमे मगन होय मूढ ललचातु है नाना दोस अमुककू अमुक प्रकार करी मार गारु पार डारु रिदमे ठरातु है आमरण दोस फाही अंतकाल छोडे नाही जगमे रुलाइ भव भ्रमण करातु है ८ अथ कृत[कर्तव्यरुद्रध्यान पर्यो जीव पर दुष देख कर मनमे आनंद माने ठाने न दया लगी पाप करी पछाताप मनसे न करे आप अपर करीने पाप चिते मेरिं झालगी किसकी न सार करे निरदयी नाम परे करथी न दान करे जरे कामदा लगी कही समझाया फिर जात उर झाया समझे न समझाया मेरे कहे की कहा लगी ९ इति रौद्रध्यानं संपूर्णम् ।।२।। to the te Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002560
Book TitleDhyanashatakam Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages350
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size19 MB
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