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________________ परिशिष्टम् - १९, ध्यानदीपिकाचतुष्पदी [ ढाल - ६ राग योग लियो राजा भरतरी . एहनी] साढा च्यारे घडी रहे, वायु एके नाडि; पीछे बीजी नाडिमे, जाये ते छांडि छांडि । धारो० १ एकवीस सहस उच्छवास ए, षटसत तिहां भेली; स्वस्थ मनुज अहोरात्रिमे, आनपान सुमेलि । धारो० २ पवन चालि जाण्या विना, न लहे निज तत्त्व; धारो० ६ वेध हवे चिंतवु, चित चित्र निमित्त । धारो० ३ करि निश्चल आलस तजी, ले श्वास सुगंधि; जाती फल बहुलादिने, भूवेधनि संधि । धारो० ४ कुंकुम अगर कपूरसर, छे वरुणनो वेध; थूल वेध ओलख करो, सुखम संवेध । धारो० ५ भ्रमर शलभ मृग पक्षिमे, नर तूरंग शरीर; धातु पक्ष पाषाणमे, भूवस तरु नीर । इक मंडलथी निसरे, पेसे बीयठाम; स्वेछाये चाले सदा, ए उत्तम धाम । धारो० ७ नवरपुरमे संचरे, ए कौतुक काज; प्राणायाम प्रसादथी, सीझे शिवकाज । धारो० ८ काम दर्प मन जय करे, सहु रोग विलाय; तन थिरता जोगी करे, वायुतणे सहाय । धारो० ९ जन्म लक्ष कृत पापनो, क्षय करे तुरत; दोय घडीमे मुनिवरु, प्राणायामनीसत्त । धारो० १० एक बिंदु जलनों पीये, मास दोयने छेह; तो पिण प्राणायाम सम, नवि थाये तेह । धारो० ११ प्राणायामनी साधना, निश्चयथी हेय; देवचंद्र जिनधर्ममे, ए नवि आदेय । धारो० १२ Jain Education International 2010_02 - - For Private & Personal Use Only • १७९ www.jainelibrary.org
SR No.002560
Book TitleDhyanashatakam Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman, Haribhadrasuri
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages350
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size19 MB
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