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परिशिष्टम्-१९, ध्यानदीपिकाचतुष्पदी
१७१ थावर जंगम जीव सब, के हिंसकके शांत; के सुख के दुखकारके, के विषयी के दांत । ३ निज स्वभाव पामो सकल, सह पामो सुख गेह; समदृष्टीभावे मुनि, मैत्री भावन एह । ४ रोगी दीन सशोकमय, वध बंधनथी नद्ध; भूख तृषा श्रमसुं नड्या, शस्त्रघात भय रूद्व । ५ मरण भये पीडित भणी, रक्षानी मति जेह; अभयदान मति निरमली, करुणाभावन तेह । ६ दरसन ज्ञान चरितयुत, तत्त्वलीन सम धार; जित कषाय तृष्णारहित, सुमति गुपति भंडार । ७ जिनशासन परि भावना, नित नित वधती देखी; मन प्रमोद पामे अधिक, मुदीता भावन पेखी । ८ निर्दय परस्रीलंपट, सबभक्षी अतिदुष्ठ; मुनिनिंदक नास्तिकमति, निजसंगी गुणभ्रष्ठ । ९ एहवा जनने संग पणि, रहे मध्यता साहि; तेह उपेक्षा भावना, कही जिनागममांहि । १०
[ढाल-३ - राग - धणरी बिंदली रंग लाग्गो... एहनी] हारे मोरा लाल आनंद कर ए भावना, रागहीन शिवमाग मोरा लाल; आत्मसौख्य मुनि अनुभवे, रमतो भावन वाग मोरा लाल । १ भावो जे गुणभावना, अध्यातमगुणरूप मोरा लाल; निरविषयी ज्ञानी मुनि,परमातम सुख भूप मोरा लाल । भावो० २ हारे० मोह मिटे ए भावतां, योग ध्यान थिर थाय मोरा लाल; परम सौख्य मुनि भोगवे, उदासीनता रोग मोरा लाल । भावो० ३ हारे० निरागी मुनि एकता, ग्रहे ध्यान थिर काज मोरा लाल; निच ऊंच कुण ध्यान छे, साधन ध्यान समाज मोरा लाल । भावो० ४ . हारे० ठाम दोषथी चित्त ए, तुरत थाय सविकार मोरा लाल; तेह ठाम एकांत लहि, थाये शांत सुखकार मोरा लाल । भावो० ५ हारे पाखंडी मिथ्यामति, म्लेच्छ, नीच जिहां राय मोरा लाल; रौद्र भूत देवीतणो, नास्तिक मंदिर थाय मोरा लाल । भावो० ६ हारे० वेश्या व्याभिचारी वली, जिहां कुग्रंथ वंचाय मोरा लाल; मानी दुशीली जिहां, नट विट भेला थाय मोरा लाल । भावो० ७ हारे० कामी भील चंडालनो, राक्षस हिंसाधाम मोरा लाल; जूवारी मद्यपाननो, जे चीतारा ठाम मोरा लाल । भावो० ८
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