________________
10
द्वितीयं धर्मलाभद्वारम्
अह इकल्लविहारं, पडिवन्नो सामिणा अणुन्नाओ । उच्चरिए इव अंतर-रिऊ जिणंतो भमइ पुहविं ॥३६७|| नियतणुणो निरवेक्खे, महातवा दुत्तवे वि तवइ तवे । सो रायरिसी सम्मं, परीसहे सहइ दुसहे वि ॥३६८॥ अह आभीइकुमारो, रज्जे ठवियम्मि केसिकुमरम्म । चिंतइ जिट्ठसुओ हं, पभावईकुक्खिसंभूओ ॥३६९।। ता रज्जसामणो मे, सव्वत्थ खमस्स नीइमइणो वि । नो दिन्नमजोगस्स व, ताण कमागयं रज्जं ॥३७०॥ जामेओ वि हु एसो, केसी पुण ठाविओ सरज्जम्मि । ता किं मज्झ पराभव-जणगाइ इमस्स सोए ॥३७१॥ इय माणसदुक्खेणं, अभिभूओ आगओ स चंपाए । मासियसुयस्स कोणिय-निवस्स पासम्मि रहिओ य ॥३७२॥ मुणिणो उदायणस्स वि, वाही दुट्ठो अहन्नया जाओ। सो खिज्जइ तेण बहुं, दो इव कसिणपक्खम्मि ॥३७३॥ जाणतो वि सरोगं, अप्पाणं देहनिम्मणो स मुणी । दंसेइ न विज्जाणं, न करेइ य ओसहं किं पि ॥३७४॥ भणइ मुणी इह देहे, किं अन्नं अत्थि भो महाभाग ! । रोगमइ च्चिय देहो, देहीणं जं सकम्माणं ॥३७५॥ विज्जो जंपइ पढम, देह च्चिय धम्मसाहणं मुणिणो । ता तुममवि धम्मत्थी, अणुमन्नसु ओसहं मज्झ ॥३७६॥ एयं सावज्जेहिं, अन्नेहिँ वि ओसहेहिँ अवणेमि । तं तुज्झ न कप्पिस्सइ, ता निरवज्जं दहिं भुंज ॥३७७॥ तो सुलहदहिकरएणं, विहरंतो गोउलेसु रायरिसी । वीयभए संपत्तो, एमागी खग्गिसिंग व्व ॥३७८॥ तत्थ उदायणठविओ, केसीनामेण चेव अत्थि निवो । रज्जं पुण सचिवेहिं, गसियं कटुं व घुणएहिं ॥३७९॥
15
20
25
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org