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द्वितीयं धर्मलाभद्वारम्
आयावेण व तिसिओ, तवणो पाऊण करसहस्सेहिं । सोसइ जलठाणाई, गिम्हे कप्पंतकप्पम्मि ॥ २९०॥ इय वट्टंते समए, मरुदेसे तं गयं निवइसिन्नं । तत्थ य सलिलाभावे, पीडिज्जइ खित्तधन्नं व्व ॥ २९९ ॥ तो तन्हाइ किलंतं, सिन्नं दठ्ठे उदायणो निवई । पुव्वं कयसंकेयं, सुमरेइ पभावईदेवं ॥२९२॥ सो सुमरियमत्तो वि हु, संपत्तो सिद्धचेडउ व्व तया । पुच्छइ समरणकज्जं, अह आह निवो जलाभावं ॥२९३॥ तत्तो सुरो विउव्वइ, सजलाई तत्थ तिन्नि कुंडाई | अग्गिममज्झिमपच्छिमवलाण जलपाणजुग्गाई ॥ २९४॥ मज्जणपाणाईयं, कुव्वंतो तज्जलेण सिन्नजणो । अमयरससिंचिओ इव, सव्वो उज्जीविओ तइया ॥ २९५ ॥ संपत्ताइ पसिद्धिं, तिपुक्खराई ति ताइँ कुंडाई । नीरस्स निहाणाणि व, अज्ज वि चिट्ठति तह चेव ॥ २९६ ॥ इय सिन्नस्सासासण-मणुट्ठिओ सो पभावईदेवो । नरवइणाणुन्नाओ, संपत्तो निययकप्पम्मि ॥ २९७॥ अह सो उदायणनिवो, महाबलो दुग्गसंठियनरिंदे । आणापरे कुणतो, मालवदेसम्म संपत्तो ॥ २९८ ॥ तं आसन्नं सिन्नं, नाऊण निवो वि चंडपज्जोओ । चउरंगबलसमेओ, संमुहमावासिओ झति ॥ २९९ ॥ अह निट्टंकियदियहे, ते दो वि विवायण व्व रायकुले । समरंगणम्मि ढुक्का, नियनियपक्खेण परियरिया ||३००॥ अह उभओ पासेसुं, उच्छलिओ समरतूरनिग्घोसो | अब्भिट्टाई दुन्नि वि, बलाइँ जयलच्छिलुद्धाइ ॥३०१ ॥ करिणो करहिं तुरगा, तुरंगमेहिं रहीहिँ रहिणो य । सहा सहडेहिँ तया. समगं चिय तत्थ जज्झति ॥३०२ ||
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