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द्वितीयं धर्मलाभद्वारम्
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सो पावो पज्जोओ, मह पडिमं तक्करु व्व हरिऊण । कत्थ गमिस्सइ इन्हिं, रविणो नट्ठा सियालि व्व ॥ २६४॥ अह अत्थाणे पत्तो, पज्जोयनिवस्स अप्पए दूयं । तूण तत्थ सो वि हु, नियपहुसिक्काइ इय भइ ॥२६५॥ नरवर ! दासीहरणं, नो जुज्जइ दुट्ठचिट्ठियं एयं । चंदस्सेव कलंकं, होही तुह निम्मलस्सा वि ॥ २६६ ॥ लब्भइ नरिंदकन्ना वि, पत्थिया किन्न किंकरी एसा । ता कह निरत्थयमिमं नियमत्थयढक्कणं कुणसि ॥ २६७॥ नियसत्तीए इट्ठ, पिक्खंताणं परेसि गहियव्वं । तयभावे तस्स कए, भत्तीए परं पसाइज्जा ॥२६८॥ एवं तु चोरियाए, नरिंद ! मच्चू खलीकओ तुमए । खित्तो करो अहिमु, सुत्तो उट्ठाविओ सिंहो ॥ २६९॥ अहवा भग्गखएणं, जाणंतो वि हु विमुज्झई लोओ । ता एगं तुह खलियं, खमियं दिन्ना मए दासी ॥२७०॥ एयं पुण जिणपडिमं, अप्पसु जइ जीविएण तुह कज्जं । अहवा भणसि न कहियं, रणसज्जो होसु अचिरेण ॥ २७९ ॥ अह जंपर पज्जोओ, रे दूय ! मुणेइ किं न तव सामी । पिउदिन्नं पि हु रज्जं, मत्थयसुन्नाण जं जाइ ॥ २७२ || तो भणियं दूएणं, वक्खित्ते गिहजणम्मि जइ सुणओ । किंचि वि गिन्हिय गच्छइ, ता किं निव ! पोरिसं तस्स ॥ २७३॥ बलिएहिं वि चोरेहिं, गहियं वालंति जे परक्कमिणो । किं रावणेण हरिया, सीया रामेण नाणीया ? ॥ २७४ ॥ इय आयन्निय कुद्धो, पज्जोओ नियनरे निरोरुवेइ । भो ! भो ! दुम्मुहमेयं, निस्सारह धरिय गलयम्मि ॥ २७५॥ इय तेहिं पराहूओ, दूओ वलिऊण साहइ सरूवं । तो तक्खणेण कुविओ, उदयणनिवई पयंपेइ ॥२७६॥
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