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Jain Education International 2010_02
श्रीधर्मविधिप्रकरणम्
अह दूएणागंतुं, तव्वयणे अक्खियम्मि पज्जोओ । अनलगिरिहत्थिरयणा- रूढो रयणीइ तत्थ गओ ॥ २५१ ॥ सा मयणोवमरूवं, तं पिक्खिय रंजिया भणइ देव ! | देवाहिदेवपडिमं, इह मुत्तूणं न इस्सामि ॥ २५२॥ अह जंपइ पज्जोओ, जइ एवं ता इमम्मि ठाणम्मि । ठविऊण अवरपडिमं, एयं गिन्हित्तु गच्छामो ॥ २५३॥ होउ इमं ति पवन्ने, सो चलिउं आगओ निए नयरे । कारेइ तप्पमाणं, अवरं पडिमा पडिरूवं ॥ २५४ ॥ तं गिन्हिऊण पुणरवि, तहेव रयणीइ आगओ तत्थ । तीसे अप्पइ पडिमं, सा पूइय ठवइ तट्ठाणे ॥ २५५॥ अह पज्जोओ सिग्घं, दासिं देवाहिदेवपडिमं च । हत्थिम्मि समारोविय, पत्तो उज्जेणिनयरीए ॥ २५६ ॥ अइ तत्थ अनलगिरिकय - मुत्तपुरीसुक्कडेण गंधेण । विगयमया संजाया, मुणिणु व्व गया उदयणस्स ॥ २५७॥ तं दट्टु विम्हइया, जाव विलोयंति हत्थिआरोहा । ता अनलगिरिपाइं, मुत्तपुरीसे य पिक्खति ॥ २५८॥ नूणं निसाइ पत्तो, केण वि कज्जेण चंडपज्जोओ । इय निच्छिय ते रन्नो, कहंति तं वइयरं जाव ॥ २५९ ॥ ता केण वि विन्नत्तं, देव ! न दीसइ सुवन्नगुलियति । तो नायं पज्जोओ, निसाइ घित्तुं गओ दासिं ॥ २६० ॥ अह भइ निवो पिक्खह, किं पडिमा अत्थि जिणगिहे तत्तो । अत्थि त्ति विलोएडं, कहियम्मि निवो ठिओ तुट्ठो ॥२६१ ॥ तो अच्चणवेलाए, मिलाणपुष्पं उदायणो पडिमं । पिक्खइ अदिट्ठपुव्वं, नलिणि हिमदद्धकमलं व ॥ २६२ ॥ अह निम्मल्लं उत्ता - रिऊण पडिमं निरिक्खए जाव । ता न हवइ सा एस त्ति, निच्छिउं चिंतए राया ॥ २६३ ॥
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