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द्वितीयं धर्मलाभद्वारम्
अह देवीइ अदंसण-ट्ठियाइ चिंतेइ वीरजिणपडिमं । वीयभए वंदिज्जा, इय भक्खइ गुडियमेगं सो ॥२३८॥ तो तप्पभाववसओ, सो संपत्तो खणेण वीयभए । देवाहिदेवपडिमं, वंदइ परमाइ भत्तीए ॥२३९॥ अह तत्थ देवदत्ता, दासी पुच्छेइ कत्थ ठाणाओ । सावय ! पत्तो सो वि हु, अक्खइ वेयड्ढवुत्तं तं ॥२४०।। तत्तो सा सक्कारइ, विसेसओ तं गुणड्डपत्तं ति । सो वि य तुट्ठो तीसे, अप्पेई ताउ गुडियाओ ॥२४१॥ वंदियसमत्थतित्थो य, सो तओ सुगुरुपायमूलम्मि । पडिवज्जियपव्वज्जं, कयतवचरणो गओ सुगई ॥२४२॥ अह सा खुज्जा रूवं, कामेउं भक्खई गुडियमेगं । तो जाया दिव्वतणू , खणेण वेउव्विरूव व्व ॥२४३॥ तं तह सुवन्नवन्नं, सुवन्नपंचालियं व तं दटुं । जंपेइ जणो सव्वो, सुवन्नगुडिय त्ति नामेण ॥२४४॥ सा चिंतइ मम रूवं, विहलं जइ पिययमो न अणुरूवो । ता मह को हुज्ज पई, रईइ मयणु व्व समरूवो ॥२४५॥ एसो ताव उदायण-राया मह होइ तायपडिरूवो । अवरे य करिसगा इव, इमस्स करदाइणो सव्वे ॥२४६। ता मालवदेसपई, मज्झ पई होउ चंडपज्जोओ । इय कामिऊण गुडियं, बीयं भक्खेइ सा दासी ॥२४७॥ अह गुडियाहिट्ठाइणि-देवी गंतूण तत्थ तइया वि । वन्नइ सुवन्नगुडिया-रूवं पज्जोयनिवपुरओ ॥२४८॥ सो पुण इत्थीलोलो, पेसइ तक्कालमेव नियदूयं । सो गंतूणं तीसे, कहेइ पज्जोयअणुरायं ॥२४९॥ सा आह तुज्झ पहुणो, चिट्ठइ जइ मज्झ उवरि अणुराओ। ता किं न सयं पत्तो, केयं पिम्मम्मि निदुरया ॥२५०॥
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