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द्वितीयं धर्मलाभद्वारम्
सुमरे वि पंचपरमेट्ठि-मंतमाकिट्ठिमंतमिव तत्थ । नामंती पासंडिय-माणं पिव पणमिउं भणइ ॥१३४॥ गयरागद्दोसमोहो, सव्वन्नू अट्ठपाडिहेरजुओ । देवाहिदेवनामा, अरिहा मे देसणं देउ ॥१३५॥ इय देवीइ पभणिए, न हु जुज्जइ अरिहगोवणं मज्झ । जिणभत्ताइ इमाए, इय चिंतेउं च स समुग्गो ॥१३६।। पिक्खगजणनिवहाणं, दसणआवरणकम्मणा सद्धि । लहुमेव समुग्घडिओ, अपडंत च्चेव परसुम्मि ॥१३७॥ अह तम्मज्झे जीवंत-सामिणी विज्जुमालिसुरविहिया । गोसीसचंदणमई, दिट्ठा सिरिवीरजिणपडिमा ॥१३८॥ अमिलाणपुप्फदामं, सव्वालंकारभूसियसरीरं । अइअच्चब्भुयरूवं, तं पडिमं तत्थ द₹णं ॥१३९।। आणंदिओ उदयणो, विम्हईओ तवसिबंभणाइजणो । जाओ जयजयकारो, वित्थरिओ जिणगुणवियारो ॥१४०॥ मिलिओ धम्मियवग्गो, जाया जिणमयपभावणा तत्थ । जंपेइ सयललोओ, अहो अहो जयइ जिणधम्मो ॥१४१॥ अह फुरियकित्तिपसरा, पभावई उल्लसंतहरिसभरा । अइअच्चब्भुयभूयं, करेइ सा तत्थ जिणपूयं ॥१४२॥ कुसुम १ क्खय २ धूवेहिं ३,सुहफल ४ घय५ वास६ जल७पइवेहिंसा पडिमाए भत्तीए, पूर्य काऊण अट्टविहं ॥१४३॥ [ द.प्र./गा.२४] 20 तत्तो कयजणरंगा, पभावई भत्तिभारनमिरंगा ।
थुणइ सिरिवद्धमाणं, पुरो ठिया इय सबहुमाणं ॥१४४॥ "साहियसुहोवएसो, असेसलोइयसुरेसु सविसेसो । ससहरसीयललेसो, वीरो असुहं हरउ एसो ॥१४५॥ असरिसविवेयसस्सो, वयओसहिविहियसिववहवस्सो । उवइसियसुयरहस्सो, विलसिरअइसयसयसहस्सो ॥१४६॥
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