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अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम्
हाहा करी अवज्झो, इमु त्ति लोए पयंपिरे रन्नो । मोणट्ठियस्स मिट्ठो, धरइ गयं एगचरणेण ॥९२७।। अह हाहाकारपरो, भणइ जणो नाह ! एरिसो हत्थी । संपज्जइ पुण्णेहिं, पयाहिणावत्तसंखु व्व ॥९२८॥ अपराधीणत्ताओ, जं रोयइ तं करेसि देव ! तुमं । नवरं अविवेगभवं, भमिही भुवणम्मि तुह अजसो ॥९२९॥ कज्जाकज्जवियारो, कायव्वो सामिणा सयं देव !।। ता अप्पणा वियारि(णि) य, रक्खसु पसिऊण करिरयणं ॥९३०॥ भणइ निवो होउ इमं, तुब्भे सव्वे वि मज्झ वयणेण । करिरयणरक्खणकए , एयं आधोरणं भणइ ॥९३१॥ लोया भणंति किं भो !, तुममाधोरणधुरीण ! करिरयणं । इत्तियभूमि पि गयं, सक्केसि नियत्तिउं कह वि ॥९३२॥ मिठो भणइ करीसर-मेयं उत्तारयामि खेमेण । जइ अभयं देइ अहो, अम्हाणं नरवई सम्मं ॥९३३।। राया वि हु लोएणं, विन्नत्तो देइ जीवियं तेसिं । मिठो वि हत्थिणं तं, सणियं उत्तारइ नगाओ ॥९३४॥ मुंचंतु मज्झ देसंत-राइणा जंपियाइ अह ताई । उत्तरिऊण गयाओ, गयाइ एगं दिसिं घित्तुं ॥९३५।। वच्चंताई ताई, गामं एगं गयाइ संझाए । सुन्नम्मि देवभवणे, कत्थ वि सुत्ताइ जुत्ताई ॥९३६।। अह अद्धरत्तसमए , पत्तो गामाउ तक्करो एगो । आरक्खगाण नट्ठो, तम्मि पविठ्ठो य देवउले ॥९३७|| तं देवकुलं गामा-रक्खगपुरिसेहि वेढियं तत्तो । चोरं पभायसमए , गिहिस्सामु त्ति निण्णइउं ॥९३८।। हत्थेहिं परिफुसंतो, तब्भूमि तक्करो वि सो सणियं । तत्थेव गओ जत्थ य, सुत्ताई ताइ चिट्ठति ॥९३९॥
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