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श्रीधर्मविधिप्रकरणम् तं सलिलभिन्नसुहमे-गवत्थपच्छाइयं पि सव्वत्तो । सुपयडसव्वावयवं, दटुं खोभाउ सा पढइ ॥८१०।। सुन्हायं ते पुच्छइ, एस नईमत्तकरिवरकरोरु ? । एए नईइ रुक्खा, अहं पि पाएसु ते पडिओ ॥८११॥ सा पभणइ सुभगाओ, हुंतु नईओ दुमा य वटुंतु । सुन्हायपुच्छगाणं, समीहियं पुण करिस्सामि ।।८१२॥ अह तीसे सो वयणं, अमयसमं नियमणोरहलयाए । सोउं तहेव रहिओ, रन्नो आणाइ रुद्ध व्व ॥८१३।। सो चिंतंतो का नणु , इम त्ति एगस्स साहिणो हिट्ठा । पिक्खइ उच्चमुहाई , बालाई कलाभिकंखीणि ॥८१४॥ तो गंतूण स कामी, तरुसाहं पहणिऊण ले?हिं । पाडेइ बहुफलाई, अप्पेइ य तेसि बालाणं ।।८१५।। तप्फलसंपत्तीए , सो पुच्छइ हरिसियाइ बालाई । मज्जइ नईइ केयं, महिला कत्थ व गिहमिमीए ॥८१६।। अक्खंति बालया ते, सुवन्नकारस्स देवदत्तस्स । बहुया भन्नइ एसा, गिहं पि भो अस्थि अमुगत्थ ॥८१७।। अह दुग्गिला जुवाणं, तं सुमरंती नवीणपढियं व । मुत्तुं मज्जणकीलं, तहेव पत्ता नियगिहम्मि ॥८१८॥ कम्मि दिणम्मि खणम्मि य, रत्तीइ तिहीइ कत्थ ठाणे वा । पमिलिस्सामो अम्हे, इय ताइ सरंति रत्तिदिणं ॥८१९।। विरहत्ताई ताई , परुप्परं संगमाभिलासीणि । चिटुंति चक्कवागा, विव अणुरत्ताइ सुबहुं पि ॥८२०॥ सो तरुणो पव्वाइयमेगं कुलदेवयं व असईणं (असणाई) । जिमिणाईहिं आरा-हिऊण पत्थेइ अन्नदिणे ॥८२१।। अणुरत्ताणन्नुन्नं, मह बहुयाए य देवदत्तस्स । विहिदेवय व्व मुत्ता, घडसु तुमं संगमं अम्ह ॥८२२।।
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