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________________ 10 अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम् ३०९ पिउणो संवच्छरियं, तं महिसं पूइउं सहत्थेण । मारइ सो सत्थाहो, पमोयपुलयंकुरियदेहो ॥६९३।। तत्तो य तस्स मंसं, दाउं सयणाण भक्खइ सयं पि । उच्छंगट्ठियपुत्तस्स, तस्स वयणे खिवंतो सो ॥६९४।। तम्माया वि सुणी सा, समागया तत्थ मंसलोभेण । सो वि सयं तप्पुरओ, खिवइ समंसाणि अट्ठीणि ॥६९५॥ भक्खेइ पमुइया सा, नियपइजीवस्स ताणि अट्ठीणि । चालंती पवणाहय-धूमसिहग्गं व नियपुच्छं ॥६९६॥ एवं पिउजियमंसं, तह भक्खंतस्स सत्थवाहस्स । मासक्खवणी एगो, भिक्खट्ठा आगओ साहू ॥६९७।। तं तत्थ सत्थवाहं, साहू तह पिक्खिऊण सव्वं पि । नियनाणाइसएणं, जहवत्थं वइयरं मुणइ ॥६९८॥ "चिंतइ धी संसारो, जं जणयजियस्स भक्खए मंसं । इय अन्नाणो एसो उच्छंगत्थं धरइ सत्तुं ॥६९९॥ तह कुक्कुरी वि एसा, नियपइणो मंसकीकसे एवं । भक्खइ हरिसाउलिया, विवरीयं अहह भवचरियं" ॥७००॥ इय जाणिऊण सम्मं, सो साहू तग्गिहाउ नीहरिओ । तप्पुट्ठीए उट्ठिय, सत्थाहो भणइ आगंतुं ॥७०१॥ भयवं ! अगहियभिक्खो, कह मह गेहाउ तं नियत्तो सि । नाहं तुज्झ अभत्तो, नेव अवन्ना कया का वि ।।७०२॥ साह आह अहो हं, विहरेमि न मंसभक्खगगिहम्मि । तेण न गहिया भिक्खा, लाभो पुण तत्थ मह जाओ ।।७०३।। स भणइ भयवं ! को तुह, लाभो जाउ त्ति मज्झ वि कहेसु । आह मुणी सुणसु तुमं, किंतु तए नेव रुसियव्वं ॥७०४॥ एवं ति तेण वुत्ते, साहू साहेइ तस्स बोहकए । महिसयसुणियाईणं, जह जायं तं कहं सव्वं ॥७०५॥ 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002558
Book TitleDharmvidhiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprabhsuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size16 MB
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