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श्रीधर्मविधिप्रकरणम् तं मुद्दियकरत्थं, दम्मं व परिक्खिउं परिफुसंती । पिक्खइ कुबेरदत्ता, पुणो पुणो निउणनयणेहिं ॥६०२॥ तो चिंतइ नियहियए, एसा नूणं अउव्वसंठाणा । तह अवरमुद्दियादं-सणेण घडिया विदेसम्मि ॥६०३।। तत्तो य मुद्दियं तं, निययं य पुणो पुणो निरिक्खंती । चिंताइ फुरियकाया, एयं हिययम्मि निच्छयइ ॥६०४॥ एयाओ मुद्दियाओ, समतुल्लाओ तहेगघडियाओ। सरिसक्खरनामाओ, मन्नेमि सहोयराउ व्व ॥६०५॥ ता हं कुबेरदत्तो य, मुद्दियाउ व्व सरिसरूवाइ । तह समसंठाणाइं, असंसयं भाउभंडाई ॥६०६॥ अन्नूणाहियसव्वं-गओ य अम्हे फुडं जुयलजाई । इय परिणयणाकिच्चं, ही कारवियाइ दिव्वेण ॥६०७॥ पिउणा जणणीए वा, अम्हं दुहं पि कारियाउ धुवं । तुल्लाउ मुद्दियाओ, तुल्लेण अवच्चनेहेण ॥६०८॥ जं सोयराइ अम्हे, तेणं चिय न मह पइमई इत्थ । एयस्स वि घरणिमई, नेव सयं मं पइ हवेइ ॥६०९॥ एवं कुबेरदत्ता, तह त्ति कयनिण्णया नियमणम्मि । हत्थे कुबेरदत्तस्स, खिवइ तं मुद्दियाजुयलं ॥६१०॥ तत्तो कुबेरदत्तो वि, मुद्दियाणं जुयस्स दंसणओ । आसाइऊण चिंतं, तहेव पत्तो परिविसायं ॥६११॥ अह सो कुबेरदत्ताइ, मुद्दियं अप्पिऊण उढेइ । पुच्छइ य गिहे गंतुं , नियजणणि इय सपहपुव्वं ॥६१२॥ "मह कहसु तुह सुओ हं, किमगजो दक्खिणोवलद्धो वा । पडिवन्नो अन्नो वा, जं पुत्ता हुंति किल बहुहा ॥६१३॥ महया निब्बंधेणं, अह पुच्छंतस्स तस्स मायाए । मंजूसालाभाई, कहिओ सव्वो वि संबंधो ॥६१४।।
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