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________________ 5 10 15 20 25 ३०० Jain Education International 2010_02 श्रीधर्मविधिप्रकरणम् "जह महुरानयरीए, नयरीइप्पमुहगुणकयनिवेसा । वेसा कुबेरसेणा, सेण व्व मणोभवनिवस्स ॥ ५७६॥ सा पढमुप्पन्नेणं, गब्भेणं खेइया सजणणीए । विज्जस्स दंसिया खलु स एव रोगीण जं सरणं ॥ ५७७॥ , तं नसफंदाईहिं, विज्जो नाउं निरामयं भणइ । एयाई नत्थि रोगो, किंतु किलेसे इमो होऊ ॥५७८॥ रम्म फुडमिमी सुदुव्वहं जुयलमत्थि उप्पन्नं । ता तस्स एस खेओ, सो पुण पसवावही होही ॥५७९ ॥ अह तं जंपइ जणणी, वच्छे ? पाडेमि तुह इमं गब्भं । किं रक्खिण इमिणा, तुह जीवियगहणपगुणेण ॥ ५८० ॥ सा भइ अंब ! गब्भो, परिवड्डउ खेयमवि सहिस्से हं । समगं पि बहुअवच्च-प्पसवे जं जीवइ वराही || ५८१ ॥ सहिऊण गब्भखेयं, कुबेरसेणा दिसु पुण्णेसु । पुत्तं धूयं पि तहा, पसवइ सा भाउभंडाई ॥ ५८२॥ माया पभणइ भद्दे !, तुह रिउभूयं अवच्चजुयमेयं । उदरत्थेहिं जेहिं, मरणदुवारं तुमं नीया ॥ ५८३ ॥ तुह थन्नपियणनिरयं, जुयलमिमं जुव्वणं हरिस्सइ य । वेसाण जीविया पुण, तमेव ता रक्ख जत्तेण ॥ ५८४ | उयराउ निग्गयमिमं, जुयलं बाहिं पुरीसमिव चयसु । मा मोहं कुणसु सुए !, जं एस कुलक्कमो अम् ||५८५|| सा भइ जइ वि एवं अंब ! विलंबसु तहा वि दसदिवसे । जाव अवच्चजुयमिमं, पोसेमि अहं अणाहं व ॥५८६॥ अह कहमवि जणणीए, एसा पुण सुंदरी अणुन्नाया । पोसेइ रत्तिदियहं ते बाले थन्नदाणेण ॥ ५८७ ॥ एवं च दारए ते, परिपालंतीइ तीइ अणुदियहं । कालरयणु व्व दुसहो, पत्तो एगादसमदियहो ॥५८८॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002558
Book TitleDharmvidhiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprabhsuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size16 MB
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