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श्रीधर्मविधिप्रकरणम्
तत्तो वक्कलचीरिं, सुरअप्पियसाहुलिंगसोहिल्लं । ताओ य बंधवो वि हु, नमंति संपत्तसम्मत्ता ॥ २१३॥ अह अन्नदिणे सेणिय !, अम्हे वि समोसढा विहरमाणा । पोयणपुर आसन्ने, मणोरमुज्जाणमज्झम्मि ॥ २१४॥ वक्कलचीरी पत्तेय-बुद्धसाहू तओ निययपियरं । मुत्तूण अम्ह पासे, पत्तो अन्नत्थ नरनाह ! ॥२१५॥ राया पसन्नचंदो वि, गिहिगओ ठाविऊण रज्जम्मि । बालं पि निययपुत्तं पव्वइओ अम्ह पासम्मि" ॥२१६ ॥ एवं निवस्स अक्खिय, विरए सिरिवद्धमाणसामिम्मि । पिक्खेइ नहयलम्मी, नराहिवो देवसंपायं ॥ २१७|| तं दट्ठूणं पुच्छइ, कयंजली सेणिओ जिणवरिंदं । सामिय ! किमेस दीसइ, गयणयले देवसंपाओ ॥२१८॥ भणइ जिणो उप्पन्नं, केवलनाणं पसन्नचंदस्स |
तो केवलिमहिमकए, नरवर ! देवा इमे इंति ॥ २१९ ॥ पुणरवि सेणियराओ, जिणरायं वंदिऊण पुच्छेइ । भयवं ! केवलनाणं भविस्सइ कत्थ वुच्छेयं ॥ २२०॥ सामी वि भइ पिक्खसु, चउदेवीपरिगओ इमो देवो । नामेण विज्जुमाली, पंचमकप्पम्मि इंदसमो ॥ २२१॥ एयदिणाओ सत्तम - दियहे चविऊण तुह पुरे भावी । जंबुत्ति रिसहदत्तस, नंदणो केवली चरमो ॥२२२॥ रन्ना भणियं आसन्न -चवणसमओ कहं पि जइ एसो । ता किं इमस्स तेओ, अक्खीणं ? अह जिणो भाइ ॥ २२३॥ एगवयारसुराणं, नरवर ! पत्ते वि अंतसमयम्मि । तेयक्खयपहुमाई, हवंति न य चवणचिन्हाई ॥ २२४॥ तइया अणाढियसुरो, जंबुद्दीवाहिवो पमोएण । जंपइ उच्चसरेणं, अहो कुलं उत्तमं मज्झ ॥ २२५॥
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