________________
२६९
10
अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम्
तत्तो वक्कलचीरी, वहूसमेओ करेणुयारूढो । महया विच्छड्डेणं, नरवइणा नियगिहं नीओ ॥१७४।। सयलव्ववहारविऊ, विहिओ रन्ना कमेण सो कुमरो । गोरूवं पि जणेहिं, सिक्खिज्जइ उज्जमपरेहिं ॥१७५॥ तस्स य रज्जविभागं, दाउं राया कयत्थमप्पाणं । मन्नंतो परिणावइ, बहुआओ रायकन्नाओ ॥१७६॥ अह सो वक्कलचीरी, अक्खंडसमीहिओ वहूहि जुओ । कीलेइ जहिच्छाए , हंसीहिं रायहंसु व्व ॥१७७।। अह अन्नया य रहिओ, वक्कलचीरिस्स मग्गमित्तो सो । तं चोरदिन्नकणयाइ, विक्किणंतो भमइ नयरे ॥१७८॥ जं जस्स चोरियं तक्करेण तं तं पुणो जणो सम्मं । उवलक्खिऊण आरक्खियाण तं अप्पए रहियं ॥१७९।। अह आरक्खनरेहिं, स रायदारम्मि बंधिउं नीओ। दिट्ठो य कुमारेणं, दिट्ठीए करुणबुद्धि(द्धी)ए ॥१८०॥ उवलक्खिऊण तं तह, बद्धं मग्गोवयारिणं मित्तं ।। लहु मोयावइ कुमरो, उवयारपरा जओ सुयणा ॥१८१॥ दो पुरिसे धरउ धरा, अहवा दोहिं पि धारिया धरिणी । उवयारे जस्स मई, उवयरियं जो न पम्हुसइ ॥१८२॥ अह तत्थ सोमचंदो, नियपुत्तविओगदूमिओ भमिओ । रुक्खाउ रुक्खमूलं, नयणजलेहिं व सिंचंतो ॥१८३॥ रन्ना पसन्नचंदेण पेसिएहिं नरेहिँ कुमरस्स । कहियाइ पवित्तीए , जाओ उद्धाणनयणो सो ॥१८४।। नवरं पुत्तविओगे, अणुदियहं तस्स रोयमाणस्स । अंधत्तं संजायं , जह रिसहजिणिंदमायाए ॥१८५॥ अह सो वुड्डतवस्सी, सबंभचारीहि अन्नतवसीहिं । करणाइतवस्संते, पाराविज्जइ फलाईहि ॥१८६॥
15
20
25
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org