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सप्तमं धर्मभेदद्वारम्
"तत्तो कयाणगाई, गिण्हइ कणएण तेण सुरदत्तो । तह चेव सत्थवाहो, हवइ य काऊण सामग्गि ॥१२४॥ घोसाविऊण नयरे , तहेव आवासिओ बहिपएसे । सुमुहुत्तम्मिय तत्तो , चलिओ चंपाइ नयरीए ॥१२५॥ दीणे समुद्धरतो, कारंतो जिणगिहेसु पूयमहे । वंदंतो समणगणं, कमेण सो तत्थ संपत्तो ॥१२६॥ सम्माणंतो लोयं, सबालवुढे समागयं समुहं । महया विच्छड्डेणं, सो पविसइ निययगेहम्मि ॥१२७॥ निम्मलजसपसरेणं, पूरंतो दिसिमुहाइँ सव्वत्तो । सुरदत्तसत्थवाहो, संतुट्ठो इय कुणइ धम्मं ॥१२८॥ पंचपरमिट्ठिमंतं, समुच्चरंतो स उट्टइ निसंते । अणुदियहं सुमरंतो, देवयगुरुधम्ममाहप्पं ॥१२९॥ तो होऊण पवित्तो, सो पुप्फामिसथुईहि जिणपूयं । काऊण गिहे सुमरइ, पच्चक्खाणं च जहसत्ति ॥१३०॥ तो वच्चइ जिणभुवणे, विहिपुव्वं तत्थ दहतियसमेयं । वंदणयं काऊणं, उवउत्तो एइ गुरुपासे ॥१३१॥ तो वंदिऊण गुरुणो, पच्चक्खाणं पयासइ विहीए । पुरओ य उवविसेउं, पुच्छइ नियसंसयपयाइं ॥१३२॥ तत्तो य नियत्तेउं, समए गंतुं जहोचियं ठाणं । आयरइ अत्थचिंतं, सो गिहिधम्मविरोहेण ॥१३३॥ तो मज्झण्हियपूयं, काउं भत्तीइ विहियमुणिदाणे । भुत्तुं तम्विन्नूहि, सह सत्थत्थे वियारेइ ॥१३४॥ पुणरवि संझासमए, कयजिणपूओ विमुक्कसावज्जो । विहियावस्सयकम्मो, सज्झायं कुणइ संविग्गो ॥१३५॥ तो पत्थुयम्मि काले, जिणमहरिसिनामसुमरणपवित्तो । सेवइ अप्पं निदं सो, पव्वदिणेसु कयबंभो ॥१३६॥
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