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सप्तमं धर्मभेदद्वारम्
विविहतवच्चरणरओ, स मुणी विहरइ तहेव सुद्धप्पा । उक्कोसाऽवि हु दिन्ना, रन्ना तुट्टेण रहियस्स ॥१८५॥ जा न वि विसिट्ठरागं, तस्सुवरि कुणइ ताव रहिओऽवि । तीइ मणरंजणत्थं, निययं दंसेइ विन्नाणं ॥१८६।। गंतुं असोगवणियं, पल्लंकत्थो धणुं परामुसिउं । आरोवियबाणेण, विधइ अंबाण सो लुंबिं ॥१८७॥ तस्स य सरस्स पुखं, विंधइ अन्नेण तिक्खबाणेण । अवरेण तस्स वि तओ, कमेण जा हत्थपप्प त्ति ॥१८८॥ तत्तो खुरप्पबाणेण, छिदिउं तीइ बिंट सह तं च । सुत्तु च्चिय गिण्हेउं, अप्पइ कोसाइ गविट्ठो ॥१८९॥ तो तब्भावं नाउं, उक्कोसा भणइ पिक्ख विन्नाणं । मह इम्हि इय वुत्तुं , कारइ रासिं सरिसवाणं ॥१९०॥ निचि(कारि)त्तु तीइ उवरिं, खिविऊणं सूइयं च रासीए । पिहियं च पुप्फपत्तेहिं, तो पुणो नच्चिया एसा ॥१९१॥ नवरं नच्चंतीए , न वि खिसिओ सरिसवाण सो रासी । न य विद्धा चरणेसुं , तं दटुं रंजिओ रहिओ ॥१९२।। जंपइ मग्गेसु वरं , जेण पयच्छामि जं ममाइत्तं । जम्हा उ रंजिओऽहं, दुक्करकरणेण तुह इमिणा ॥१९३।। "सा भणइ दुक्करं किं, मए कयं जेण रंजिओऽसि तुमं ? । सव्वाण दुक्करतरं, विहियं नणु थूलभद्देण ॥१९४॥ अंबयलंबीछेए, नच्चेऽवि हु सिक्खिए न दुक्करया । सिक्खं विणा कयं जं, तं दुक्कर थूलभद्दस्स ॥१९५॥ इह बारस वरिसाई, भुत्ता भोगा मए समं जेण । सो अक्खंडियसीलो, चउमासं मह गिहे रहिओ ॥१९६॥ जो सव्वरससमग्गं, मणुन्नभुज्जं सया वि भुंजंतो । मह पासे न वि खुहिओ, स थूलभद्दो मुणी जयउ ॥१९७॥
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