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सप्तमं धर्मभेदद्वारम्
२३१ भणइ मुणी अम्हाणं, कह दव्वं इत्तियं हवइ ? भद्दे ! । कटुं पि सहउ एसु त्ति, चिंतिउं भणइ तं कोसा ॥१५९॥ निप्पालनिवो अप्पड़, कंबलरयणं अपुव्वसाहुस्स । तं गंतूणं आणसु , सो मन्नइ तं पि कामंधो ॥१६०॥ पंकाउलपुहवीए , निययवयाउ व्व सो पडिखलंतो । गंतुं कंबलरयणं, निवदिन्नं गिहिए तत्थ ॥१६१॥ उण्हे करेइ सीयं, सीए उण्हत्तणं पयासेइ । मुट्ठीइ वि गिण्हिज्जइ , कंबलरयणस्स एस कमो ॥१६२॥ तो सुहिरवंसदंडे, तं खिविउं जाव एइ ता मग्गे । आवेइ एस लक्खो त्ति, चोरयसुयपक्खिणा भणियं ॥१६३॥ 10 तव्वयणाओ जंपइ, चोरवई नियनरं दुमारूढं । किं भो पिक्खसि कत्थ वि, इंतं सत्थाइयं मग्गे ? ॥१६४॥ तेण वि भणियं समणं, एगं मुत्तुं न कि पि पिक्खामि । समणोऽवि तत्थ पत्तो, निरूवियं किं पि नो लद्धं ॥१६५।। मुक्को य तेहि साहू , जा चलिओ ता पुणो भणइ सउणो । 15 एसो गच्छइ लक्खो, तो चोरवई भणइ समणं ॥१६६॥ अभयं तुह मे साहसु , किं अच्छइ किं पि? जेण एस सुओ । अक्खइ लक्खं जंतं, तो साहू कहइ से सव्वं ॥१६७॥ कंबलरयणं चिट्ठइ, इमस्स मज्झम्मि सुहिरवंसस्स । छूढं मग्गभएणं, तो मुक्को चोरनाहेण ॥१६८॥
20 आगंतूणं मुणिणा, उक्कोसाए समप्पियं तं च । चिंतेइ साऽवि विक्खह, किं किं न करेइ कामंधो ? ॥१६९॥
अह मुणिबोहणहेडं, कंबलरयणं करम्मि गिण्हेउ । पक्खिवइ खालकुंडे सहसा मुत्ताइरसकुहिए ॥१७०॥ तं पेक्खिऊण एसो, भणइ मुणी अहह बहुयमुल्लमिमं । कटेण मए लद्धं, किमित्थ खिविउं विणासेसि ? ॥१७१॥
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