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________________ 5 10 15 20 25 २३० Jain Education International 2010_02 श्रीधर्मविधिप्रकरणम् अह थूलभद्दमुणिणो, मच्छरओ एस भणइ एयं ति । गुरुणा उवओगेणं, वियारिऊणं इमं भणियं ॥१४६॥ वच्छ अभिग्गहमेयं, मा दुक्करदुक्करं पवज्जेसु । मुत्तूण थूलभद्दं, न खमो अन्नो इमं काउं ॥ १४७॥ मह दुक्करं पि न इमं, कह दुक्करदुक्करं भणइ तुब्भे ? | ता गच्छामि अवस्सं, इय सो जंपइ पुणोऽवि गुरुं ॥१४८॥ भणियं गुरुणा होही, भंगो भो पुव्वविहियतवसोऽवि । तो तं भारं गिण्हसु, जं मुंचसि नेव अद्धप ॥ १४९ ॥ तं गुरुवयणं खंभं, अवमन्निय सो गउ व्व नीहरिओ । जग्गंतमयणसिंहे, पत्तो को साहिवणम्मि ॥ १५०॥ नणु थूलभद्दईसाइ, एस अब्भागओ विचिंतेउं । अब्भुट्ठिऊण सहसा, तं वंदइ मुणिवरं विहिणा ॥ १५१ ॥ सोऽवि अह चित्तसालं, वसहिं मग्गेइ साऽणुमन्नेइ । तत्थ ठियं पडिलाभइ, सहसाहारेहिं सारेहिं ॥ १५२ ॥ अह मज्झ मुणिवर - परिक्खणत्थं गया तर्हि कोसा । लायन्नरयणकोसा, वंदिय पुरओ निविट्ठा य ॥ १५३॥ अह थूलभद्दरोडियमयणेण मुणि त्ति जाइवयराओ । वेसाकडक्खभल्लीहिं, सो मुणी तक्खणं विद्धो ॥१५४॥ तत्तो विमुक्कसत्तो, तीए रत्तो अणंगमयमत्तो । सहस च्चिय तं पिच्छइ, उक्कोसा चिंतइ मम्मि ॥ १५५ ॥ “विन्नायविसयदोसो, बहुविहतवचरणरइयतणुसोसो । अगणियमुणिवरवेसो, हीही कह जंपए एसो ? ॥१५६॥ जो पुव्वकीलियाई, सुमराविय पत्थिओ मए विविहं । न उण मणेणऽवि खुभिओ, तस्स नमो थूलभद्दस्स" ॥१५७॥ ता सहस च्चिय खुहियं, एयं बोहेमि किं पि कहिऊणं । इय चिंतिय भणइ वयं, लब्भामो दम्मलक्खेण ॥ १५८॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002558
Book TitleDharmvidhiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprabhsuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size16 MB
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