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श्रीधर्मविधिप्रकरणम् तो भणइ थूलभद्दो , मम वसहिं देसु चित्तसालाए । जइ तुज्झ निराबाहं, तत्तो कोसा पयंपेइ ॥१२०॥ तुह चरणाणं सव्व-प्पणावि दासो जणो इमो नाह ! । किं धरइ कोऽवि अप्प-त्तियं पि ता चिट्ठ पसिऊण ॥१२१॥ अह तत्थ ठिओ भयवं, कामट्ठाणे बलेण धम्मु व्व । तीसे गिहम्मि गिण्हिय, सरसाहारं च भुत्तो य ॥१२२॥ तयणंतरमुक्कोसा, अइउक्कोसं करितु सिंगारं । तिक्खकडक्खक्खेवा खोभेउं मुणिवरं पत्ता ॥१२३॥ तप्पुरओ उवविट्ठा, उक्किट्ठा काऽवि अच्छर व्व इमा । वियरेइ हावभावाइयाओ चउराउ चिट्ठाओ ।।१२४॥ करणाणुभवक्कीलिय-अइउद्दाभाइँ ताइँ सुरयाई । पुव्वकयाइँ पइक्खण-मणुसुमरावेइ सा वेसा ॥१२५।। इय जं जं खोहकए , करेइ सा तत्थ से महामुणिणो । तं तं हवेइ अहलं, वज्जस्स व तह समुल्लिहणं ॥१२६।। पडिवासरं पि एवं, स महप्पा खोहिओऽवि झाणाओ । मेरु व्व निप्पकंपो, जा न चलइ तीइ ता भणिओ ॥१२७॥ ताण गुणग्गहणाणं, ताणुक्कंठाण ताण रमियाण । ताण भणियाण कह पहु रु? व्व न देसि पडिवयणं ? ॥१२८॥ इच्चाइसरसवयणेहि, तीइ सित्तोऽवि तस्स अहिययरं । दीप्पेइ झाणजलणो, जलेण विज्जूइ पुंजु व्व ॥१२९।। अक्खोहणिज्जमेवं, तं पिक्खिय सरसभोयणपरं पि । उवसंता उक्कोसा, पणमिय पुरओ पयंपेइ ॥१३०।। "छज्जइ तुह पयमेयं, सलहिज्जइ धीर ! तुज्झ चरियं पि । हुयवहसिहाइ पडिओ वि, जं तुमं नेव दद्धोऽसि ॥१३१॥ सवियारकामिणीहिं, इयरे भिज्जंति न उण तुह सरिसा । किं चलइ मंदरगिरी, तुलं पिव खरसमीरेण ॥१३२॥
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