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श्रीधर्मविधिप्रकरणम्
नियजणयपसाएणं, कोसावेसागिहम्मि निच्चं (ब्भं)तं । जाया बारस वरिसा, विसयसुहं भुंजमाणस्स ॥६८॥ अह आहविय तमत्थं, स थूलभद्दोऽवि निवइणा भमिओ । आलुंचिऊण एयं देव ! करिस्सामि इय भइ ||६९ || आलुंचसु इण्हि चिय, इय निववयणाउ थूलभद्दोऽवि । गंतुं असोगवणियाइ, चितए नियम एवं ॥ ७० ॥ "सुहकारणाइभोयण-सयणसिगाणाइया वि कालम्मि । न हवंति निओगीणं, रोराण व परवसाण सया ॥ ७१ ॥ धम्मत्थकाममुक्खा, भणिया मणुयत्ततरुवरस्स फलं । तं पुण निओगिणो कह, निओगहिमदणदाहाओ ? ॥ ७२ ॥ तत्थ अणिट्टियपावा - रंभेसु सया पसत्तचित्ताणं । छायाइ आयवो इव, वहइ निओगीण कह धम्मो ? ॥७३॥ रुहिरं व जलूगाओ, गिण्हंति निओगिणो जमिह अत्थं । सो पच्छा निप्पीलिय, घिप्पइ रन्ना बलेणावि ॥७४॥ पावंति पराहीणा, निओगिणो जं च कामसुक्खमिह । ककिणि मेहुणे इव, विडंबणा तत्थ न उण सुहं ॥ ७५ ॥ अह कह वि निवपसाया, आजम्मं हुंति तहवि परलोए । नरयाईण दुहाई, ता मुक्खपहे पयट्टेमि ॥७६॥
सो पुण मोक्खस्स पहो, लब्भइ नूणं सुसाहुधम्माओ । चितामणि विणा कह, हवेइ मणचितिओ लाभो ?" ॥७७॥ इय चिंतिऊण तत्थ वि स थूलभद्दो विसुद्धपरिणामो । पंचहिँ मुट्ठीहिँ समं, सहसा उप्पाडए केसे ॥७८॥ कंबलरयणं पावरिय, छिंदिउं तस्स अंतदसियाओ । रयहरणं काऊण य, समागओ रायपासम्म ॥७९॥ पभणइ चिंतियमेयं, नरिंद ! तुह होउ धम्मलाभुति । भणिउं निवगेहाओ, गुहाओ सिंहु व्व नीहरिओ ॥८०॥
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