________________
२२०
श्रीधर्मविधिप्रकरणम् तस्सुवरोहेण तओ, विन्नत्तो तीइ भणइ मंती वि । मिच्छत्तियस्स वयणं, कहं पसंसामि एयस्स ? ॥१६।। अह तीऍ अग्गहेणं, भणिओ तं तह पवज्जए मंती । इत्थीबालमूढाण, अग्गहो जेण अइबलिओ ॥१७॥ तो निवपुरओ कव्वं, नवं पढंतस्स तस्स नरवइणो । मंती अहो सुभासिय-मिमं ति वयणं पयंपेइ ॥१८॥ तं सो दीणारसयं, अट्ठहियं देइ तस्स नंदनिवो । जं जीवावइ राय-प्पहाणवयणं पि अणुकूलं ॥१९।। अडहियदीणारसए, दिज्जंते पइदिणं पि नरवइणा । विन्नवइ निवं मंती, निच्चं दिज्जइ किमेयं ति ? ॥२०॥ अह भणइ निवो मंति, देमो एयस्स तुह पसंसाए । जइ देमो सयमम्हे, ता किं पुव्वं पि नो दिन्नं ? ।।२१।। मंती वि भणइ सामिय !, एस पसंसा इमस्स नो विहिया । तइया परकीया, कव्वाइ पसंसियाइ मए ॥२२॥ एसो परकव्वाइं, सकयाइ करित्तु पढइ अम्ह पुरो । कि सच्चमिमं नो वा ?, इय पुच्छइ नरवई मंतिं ॥२३॥ एएण पढियकव्वाइ, देव ! जाणंति बालियाओऽवि । दंसिस्सामि पभाए , इय भणइ निवं पि सगडालो ॥२४॥ तस्स य सत्त सुयाओ, इमाउ जक्ख त्ति जक्खदिन्ना य । भूया य भूयदिन्ना, ए( से )णा रेणा तहा वेणा ॥२५।। तासि जिट्ठा गिण्हइ, इगवारुत्तं तहावराओऽवि । दुतियावारक्कमओ, जा सत्तहिँ सत्तमी भणइ ॥२६॥ अह बीयदिणे ताओ, नीयाओ नियसुयाउ निवपासे । जवणीअंतरियाओ, निवेसियाओ य सचिवेणं ॥२७॥ तत्थ (य) अट्ठहियसए , पढिए कव्वाण तत्थ वररुइणा । पभणंति जहाकमसो, मंतिसुयाओऽवि तह चेव ॥२८॥
15
25
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org