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सप्तमं धर्मभेदद्वारम्
सा कन्नया नडी पुण, गाइणिविदेण संगया तत्थ । होऊण वंसमूले, गायइ सरगामसंसुद्धं ॥४३॥ वंसुवरि इलापुत्तो, नच्चेई खग्गखेडए वि समे । पेक्खगजणनिवहाणं, तइया सह अंतकरणेहिं ॥४४॥ किरणाइँ सत्त पच्छा-मुहाइ सत्तेव अभिमुहाइं च । सो देइ कीलगगए , कुव्वंतो पाउयाछिद्दे ॥४५॥ तो नट्टेणं तेणं, इमस्स अइसाइणा जणो सव्वो । तह रंजिओ मणे जह, जाओ सव्वस्सदाणमई ॥४६॥ नवरं पढमं चायं, दिज्जंतं नरवरेण तस्स तहिं । चिट्ठइ पडिक्खमाणो, बलाउ हत्थम्मि धरिउ व्व ॥४७॥ राया तं पुण कन्न, पिक्खिय चिंतेइ तीइ अणुरत्तो । परिणेमि अहं एयं, जइ एसो मरइ पडिऊण ॥४८॥ तो भणइ इलापुत्तं, चुक्कमणो नरवई अहो सम्मं । न तुमं दिट्ठो सि मया, ता पुणरवि देसु किरणाई ॥४९॥ अह कसिणमुहो जाओ, सव्वोऽवि जणो तहिं ससोउ व्व। तोसाउ इलापुत्तो, वि तह पुणो देइ किरणाइं ॥५०॥ तप्पडणाकंखाए , तहेव जंपइ इलासुयं निवई । तत्तो सयलजणेणं, नायं रन्नो मणो दुटुं ॥५१॥ आसापिसायनडिओ, इलासुओ ताइ पुणरवि करेइ । किं किं न कुणंति जणा, अंतरिया लोभमुच्छाए ? ॥५२॥ अइ चिंतइ नरनाहो, अच्छरियमिमस्स सुदिढअब्भासो । जं एस विसमकिरणे, पुणो पुणो देइ अक्खलिओ ॥५३।। तत्तो जंपइ निवई, दुट्ठो दट्टण तं परिस्संतं । देसु पुणोऽवि हु किरणे, अदरिदं जेण कारेमि ॥५४॥ तं आयन्निय लोओ, विरत्तचित्तो निवम्मि तह जाओ । जह पच्चक्खं पि तहिं, अक्कोसे देइ भूवइणो ॥५५॥
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