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सप्तमं धर्मभेदद्वारम्
२०३ "विण्हुकुमारो वि मुणी, दुक्रतवसोवलद्धबहुलद्धी । बहुपाडिहेरनिलओ, विक्खाओ तिहुयणे जाओ ॥१८३॥ मेरु व्व होइ उच्चो, वच्चइ गयणम्मि पक्खिनाहु व्व । मयणु व्व अणंगत्तं, सुरु व्व धरई य बहुरूवो ॥१८४॥ जलणो इव तेइल्लो, पडाउ इक्काउ जणइ पडकोडि । घडयाउ घडसहस्से, करेइ गयणं व सव्वगओ ॥१८५॥ विविहाभिग्गहनिरओ, एगागी निम्ममो निरीहप्पा । बारसभेयं पि तवं, तवेइ सो गिरिगुहाईसु" ॥१८६॥ अह सिरिसुव्वयसूरी, पत्तो हत्थिणपुरम्मि विहरंतो । वासारत्तं च ठिओ, उज्जाणे बहुमुणिसमेओ ।।१८७।।
___10 अन्नदिणे सो नमुई, पिक्खिय तं चिल्लयं फुरियकोवो । नियवयरसाहणट्ठा, चक्किं मग्गेइ पुव्ववरं ॥१८८॥ देव ! मह सत्तदियहे, नियरज्जं देसु सव्वहा वि परं । तत्ती न हु कायव्वा, आह निवो किं कुणसि विप्प ! ॥१८९।। सो भणइ देव ! जन्नो, विहियव्वो वेयभणियविहिपुव्वं । 15 रन्ना वुत्तं एवं, होउ तओ ठाविओ रज्जे ॥१९०॥ राया सयमंतेउर-मज्झे पविसेइ परिचइ य तत्तीं । नयराउ तओ नमुई नीहरिओ जन्नकरणत्थं ॥१९१॥ गंतूण जन्नवाडं, पत्तो कवडेण दिक्खिओ होउं । रज्जठविओ त्ति लोओ, तो तं वद्धाविउं एइ ॥१९२॥ माहणतवस्सिपमुहा वि आगया तत्थ जिणसमणवज्जा । तो अत्थाणे नमुई कुमई एवं पयंपेइ ॥१९३॥ मम रज्जमसहमाणा, पेक्खह सेयंबरा न इह पत्ता । ता तेसिं अवराहं, न अहं एयं खमिस्समामि ॥१९४॥ अह सद्दाविय सहसा, सुव्वयसूरी पयंपिओ तेण । लोयववहारवज्जा, तुब्भे परमत्थमूढा य ॥१९५।।
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