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________________ २०१ 10 सप्तमं धर्मभेदद्वारम् अह चक्की तिमिसगुहं, पविसिय पासेसु तीइ उभएसु । एगूणवन्नसंखे, मंडलए आलिहइ मणिणा ॥१५७।। तेसिं रविबिंबाण व, उज्जोएणं हयम्मि तमपूरे । पविसइ चउरंगबलं पि, चक्किणो पिट्ठओ लग्गं ॥१५८।। उम्मग्गनिमग्गाओ, नईउ उत्तारिऊण सो सिन्नं । आवायचिलाएहिं, सह जुज्झइ समररसिएहि ॥१५९॥ जुज्झम्मि य तेऽवि जिया, नियकुलदेवे सरंति मेहमुहे । वरिसंति तेऽवि तेसिं, वयणाउ निरंतरं तत्थ ॥१६०॥ तो जलभएण सिन्नं, ठवियं सव्वं पि चम्मरयणम्मि । उवरिं च छत्तरयणेण, छाइयं चक्किणा तेण ॥१६१॥ जो पुव्वण्हे साली, वविओ तं तत्त पच्छिमण्हम्मि । भुंजंति जणा एवं, दिणाणि जा सत्त वच्चंति ॥१६२।। अहमहपउमकरहिं, विणिज्जिया तेऽवि मेहमुहदेवा । उवसामंति चिलाए , गाहंति य चक्किणो आणं ॥१६३।। तत्तो हिमवंतोवरि बावत्तरिजोयणट्टियं तियसं । साहइ सरेण नामं च, विलिहए उसभकूडम्मि ॥१६४॥ सिंधुनइउत्तरिल्लं, खंडं साहिय उवेइ सेणाणी । तो गंगाए देविं, सिरिमहपउमो वसे कुणइ ॥१६५॥ तत्थऽवि गंगाइ परं, खंडं सेणावई पसाहेइ । अह वेयड्डमहानग-मूले आवासिओ चक्की ॥१६६।। तत्थ य खयरनिवेहिं, रणरहसुन्भिन्नबहलपुलएहिं । सह जुज्झइ महपउमो दुज्जेओ चक्करयणेण ॥१६७।। काऊण महासमरं, नियसेवावित्तिणो कया खयरा । तो बलसहिओ चलिओ, खंडपवायं गुहं पत्तो ॥१६८॥ अह तत्थ नट्टमालं, देवं साहिय तहेव नीहरिओ । गंगाइ दाहिणिल्लं, तो खंडं जिणइ सेणाणी ॥१६९॥ 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002558
Book TitleDharmvidhiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprabhsuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size16 MB
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