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सप्तमं धर्मभेदद्वारम्
सम्माणिऊण बहुयं, भट्टं उववेसिउं च आसन्नं । पुट्ठा कुमरपवित्ती, कहिया तेणावि जह दिट्ठा ॥१३१।। अह कहिऊण सरूवं, निययं सव्वं पि पेसिओ नमुई । कुमरस्साणयणकए, संपत्तो सोऽवि तप्पासे ॥१३२॥ कहिऊण पिउसरूवं, पुच्छइ निग्गमणकारणं नमुई। कुमरोऽवि तस्स साहइ, रहभमणनिवारणं नयरे ॥१३३।। अह पिउदिन्नाएसं, सलंघिरो नमुइसंजुओ कुमरो । महया विच्छड्डेणं, चलिओ चउरंगबलकलिओ ॥१३४|| ठाणे ठाणे नरवरभत्तिकओ वायणाई गिण्हंतो । संपतो अचिरेणं, हथिणपुरबाहिरुज्जाणे ॥१३५॥ अह नमुई पउमुत्तर-निवस्स विन्वइ तं तहाभिभवं । तो रन्ना तत्कालं, जिणरहजत्ता समाढत्ता ॥१३६।। उग्घोसिया अमारी, कयाउ सव्वत्थ हट्टसोहाओ । दिन्ना कुंकुमछडया, विहिया तह मुत्तियचउक्का ॥१३७॥ सुमुहुत्ते संपत्तो, सयदुवारम्मि जिणरहो पढमं । उज्जाणाउ कुमरोऽवि, आगओ नमइ नियपियरे ॥१३८॥ काऊण कुसलवत्तं, मायापिउसंजुओ महापउमो । संपत्तो रहपासे, करेइ महिमं च तत्थ सयं ॥१३९॥ तत्तो सणियं सणियं, तम्मि पुरे सो रहो परिब्भमिओ । ईसरसचिवाईहिं, पूइज्जतो पडिगिहं पि ॥१४०॥ इय रहजत्तं काउं, रन्ना पउमुत्तरेण महपउमो । वयगहणवइयरं साहिऊण रज्जम्मि अहिसित्तो ॥१४१।। तो गिण्हइ पव्वज्जं, विहिपुव्वं सो महाविभूईए । विण्हुकुमारेण समं, सिरिसुव्वयसूरिणो पासे ॥१४२॥ अह दोऽवि दुविहसिक्खं, गिण्हंति सुयं पढंति गुरुपासे । विविहतवच्चरणरया, जयम्मि विहरंति अममाया ॥१४३॥
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