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श्रीधर्मविधिप्रकरणवृत्तौ दृष्टान्तगतविषयविशेषदिग्दर्शनम् ॥
गा. श्लो. ६/१-२५१ ६/२०-२३
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[१] धर्मपरीक्षाद्वारे प्रदेशिदृष्टान्तः
केसिगुरुधम्मोवदेशः ॥ सुहासुहकम्मसरूवम् ॥ सुहकम्मेणं धम्मो, असुहकम्मेणाधम्मो ॥ चित्तमंतिस्स चितवना ॥ प्रदेशि-केसिगुरुस्स संशयोत्तराः ॥ जीव-सग्ग-नरयसिद्धिः ॥ राया केसिगुरुं भत्तीए विनवेइ ॥ लोहभारव्वहनरदिटुंतो ॥ पऐसिनिवो सम्मत्तसहियाणि बारस वयाई गिण्हेइ ॥ पऐसिनिवस्स धर्मकृत्यानि ॥ सूरियकंताए विलसियम् ॥ नारीण सरूवम् ॥ गीयत्थो मंती आराहणं कराविय सुसमाहिं पाविओ राया ॥ पएसिनिवो सयमुवचिएहिँ पुन्नेहि सोहम्मकप्पम्मि पत्तो, सूरियाभविमाणे उप्पन्नो ॥ सुरियाभदेवस्स रिद्धिसरूवम् ॥ सुरियाभदेवजिणवीरवंदणत्थमागच्छइ ॥ सुरियाभदेवो मणहरं नर्से विरयए ॥ सूरियकंता छट्टनरयम्मि गया ॥
वीरजिणाइट्ठ पएसिचरियं जणो सुणेऊण धम्मे सुथिरो जाओ ॥ [२] धर्मलाभद्वारे उदायनराजदृष्टान्तः
कुमारनंदिसुन्नयारपसंगो ॥ सम्मत्तसरूवम् ॥
६/३४-३६ ६/७६-१२७ ६/१०५-१२७ ६/१२८-१३४ ६/१३७-१६० ६/१६८-१७१ ६/१८०-१८४ ६/१८५-१८९ ६/१९०-१९२ ६/१९७-२०५
६/२०७-२१२ ६/२१३-२३० ६/२३४-२३८ ६/२३९-२४२ ६/२४५-२४६
६/२४९ १४/१-४०० १४/१०-१०५
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