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________________ १६७ 10 सप्तमं धर्मभेदद्वारम् अह पणमिऊण निवई, सा मग्गइ तत्थ पुव्वदिन्नवरं । सामिय ! नाहं कस्स वि, देया इत्तो परं तुमए ॥१६३॥ सो नियमुहपडिवन्नो, रन्ना दिन्नो वरो तया तीसे । सा मूलदेवविरहे, अन्ननरं न रमइ सइ व्व ॥१६४।। अह मग्गे वच्चंतो, स मूलदेवो कमेण संपत्तो । बारसजोयणमाणं, अडविं भीमं जमगिहं व ॥१६५॥ वायामित्तसहाओ, बीओ जइ को वि हवइ मज्झ पहे । ता सोहणं ति जंतो, हरि व्व पच्छामुहं नियइ ॥१६६।। ता तत्थ ढक्कविप्पो, संबलथइयासमन्निओ पत्तो ।। सद्धडनामो सो तेण, पुच्छिओ कत्थ वच्चेसि ॥१६७॥ स भणइ अडवीपुरओ, वीरनिहाणं वयामि ठाणमहं । कत्त तुमं पुण गंता, कुमरो विन्नायडं कहइ ॥१६८।। अह माहणेणं कहियं, भव्वो भो भद्द एस अम्हाणं । जाओ सत्थो तत्ता, वहंति अडवीपहे दो वि ॥१६९॥ मज्झन्हे संजाए , सरम्मि पक्खालिऊण करचरणे । पालीइ मूलदेवो, वडतरुछायाइ वीसमिओ ॥१७०॥ विप्पो पुण सरतीरे, संबलथइयाइ सत्तुए गहिउं । सलिलेण वट्टए उल्लिऊण, भुंजेइ एगागी ॥१७१।। चिंतेइ मूलदेवो, पालिठिओ एरिस च्चिय हवेइ । माहणजाई भुक्खालुय त्ति, पच्छा मम वि दाहि ॥१७२॥ अह भुंजिऊण विप्पो, बंधेउं सत्तुयाण तं थइयं । लग्गो मग्गम्मि पुणो, तयणुठिओ मूलदेवो वि ॥१७३।। चिंतइ कुमारो हियए , संज्झासमयम्मि दाहिही मज्झ । तत्त वि तहेव भुत्ते, नूणं कल्लम्मि दाहि त्ति ॥१७४॥ एवं ते वच्चंता, मुत्तूण पहं सुयंति रत्तम्मि । ततो दो वि पभाए , वहति मग्गम्मि तह चेव ॥१७५।। 15 20 25 JainEducation International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002558
Book TitleDharmvidhiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprabhsuri
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages426
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size16 MB
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