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सप्तमं धर्मभेदद्वारम्
अक्काइ भणियमेवं, हवेउ तो तत्थ न्हावए गणिया । चितेइ मूलदेवो, सिरसि पडंतम्मि न्हाणजले ॥ १३७॥ " हा हा ! हं विग्गुत्तो, जं एएणावि इय पराभविओ । अहवा विसयसत्ता, किं किं दुक्खं न पिक्खति ॥ १३८ ॥ हा हा ! कत्त नरेसर - पुत्तोऽहं कत्थ एस वणियसुओ । जाउ खयं महबुद्धी, जं एएणं अहो विहिओ" ॥१३९॥ अह पल्लंकतलाओ, बिलाउ भोगि व्व नीहरंतो सो । गारुडण व अयलेण, तक्खणं पाणिणा गहिओ ॥ १४०॥ भणिओ य तेण इय सो, किं भो जुज्जइ तवेरिस काउं ? | सो पडिभणेइ सव्वं, गरिहियमेयं महप्पाणं ॥ १४१ ॥ अयलो जंपइ संपइ, करेमि किं तुज्झ खूणपडियस्स । स भणइ जं तुह रुच्चइ, करेसु तं निययकुलउचियं ॥ १४२ ॥ अह भणियं अयलेणं, चंदु व्व कलाकलावकलिओ वि । संपाविओ सि वसणं, विहिवसओ राहुण व्व मए ॥१४३॥ ता मुक्को सि महायस, तुमं मएह वउ तुज्झ कल्लाणं । नवरं कया वि वसणा - विडयं रक्खिज्जसु ममं पि ॥ १४४ ॥
जह सो वि कसिणवयणो, हा कयदक्खो वि विनडिओ हं ति । निग्गंतूण घराओ, पुरबाहिं मज्जइ सरम्मि || १४५॥ अवमाणमलिणमित्तो, मित्ताण कह मुहं पयंसेमि । इय चिंतिऊण चलिओ, विन्नायडपुरवराभिमुहं ॥१४६॥ दट्ठण देवदत्ता, विडंबणं तस्स मूलदेवस्स । अयलं पइसा वेसा, सावेसा जाइ निवभवणं ॥ १४७॥ रन्ना पयंपिया सा, किं भद्दे ! दुम्मणा तुमं अज्ज । किं कस्स वि अवमाणं, हाणी वा इट्ठविरहो वा ॥ १४८ ॥ सा भणइ तए जइया, मह नच्चंतीइ इह वरो दिन्नो । तइआ जो मह पासे, आसि नरो पडहकलकुसलो ॥१४९॥
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